Sunday, 6 July 2025

सोनेट है - 3

<p>कब ये सोचा था हमें होगी मुहब्बत

बोझ एहसासों का यूँ ढोना पड़ेगा

बेकली होगी, करेंगे गम शरारत 

और फुरकत में हमें रोना पड़ेगा


बढ़ चुका है मर्ज़ अब हद से ज़ियादा 

दर्द हम को खुशनुमा लगने लगा है

दोस्त भी देने लगे हम को दिलासा

इश्क़ कोई हादसा लगने लगा है


ढूंढती हैं क्यों उन्हें नजरें मुसलसल

क्यों हमें खुद को जताना पड़ रहा है

वो करें हमको नज़रंदाज़ हर पल

और हमको मुस्कुराना पड़ रहा है


क्यों हमें ज़िल्लत ये सहनी पड़ रही है

बात हम को मुँह से कहनी पड़ रही है

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Saturday, 21 June 2025

सोनेट - बूँद

 


बूँद प्यासे के गले में जिंदगी सी

बूँद टपके आँख से तो है कहानी

चंद बूंदें मिल गईं तो सिंफ़नी सी

ये ही गंगा जल यही ज़मजम का पानी


बूँद बादल से गिरे जो ग्लेशियर पर

तयशुदा उसके लिए लंबा सफर है

और जिन बूंदों को सागर है मयस्सर

याद रखिए उनका होना बेअसर है


बूँद का गिरना ख़ुदा के हाथ में है

बूँद का तो फ़र्ज़ है बस बूँद होना

बूँद का होना लहर के साथ में है

आखिरश तय है, उसे ख़ुद को है खोना


प्यास मेरी है कि जो बुझती नहीं है

बूँद ख़ुद के वास्ते कुछ भी नहीं है


नकुल

Monday, 16 June 2025

सोनेट - कशमकश दिल में ये कैसी चल रही है

कशमकश दिल में ये कैसी चल रही है 

इल्म है, मुमकिन नहीं जो चाहता हूँ 

एक ख़ुशफ़हमी सी दिल में पल रही 

और' ये ख़ुशफ़हमी है मैं भी जानता हूँ 


इस ज़माने के तकाज़े हैं पुराने 

और दिल की चाहतें कुदरत खुदा की 

ढूंढता है दिल खुशी के कुछ बहाने 

फिर ठिठक जाता है सोचे जब सज़ा की


रूह से मेरी उतारे क़र्ज़ कोई

ज़हर दे मुझको कि सूली पर चढ़ाए

इश्क़ है इक जुर्म या है मर्ज़ कोई

कोई तो आकर मुझे अब ये बताए


ख्वाहिशों पर वार करना चाहिए था

या मुझे इज़हार करना चाहिए था


नकुल

2122 2122 2122

इरशाद खान सिकंदर

 


हल्की सी मुस्कान थी सादा लड़का था

और' मन से इरशाद, सिकंदर जैसा था


यूं तो दिखने में कम ही था उसका कद 

शाइर वो अच्छे अच्छों से ऊंचा था


धीरे धीरे कह देता था गहरी बात

और' फिर कुछ ही देर में खुल कर हंसता था


कहता था फिर इश्क़ उसी से करना है

जिससे उसका पहला इश्क़ अधूरा था


मुझ से मिलने घर पर आया था जिस दिन

रोशन मेरे घर का कोना कोना था


ज़ाहिर है जन्नत में इक महफिल होगी

जिसमें पढ़ने का उसको भी न्योता था


लगता है इक रोज़ ये कहते लौटेगा

चाय पिलाओ यार, समोसा ठंडा था


नकुल

Saturday, 7 June 2025

इश्क़ में पड़ गए हबाबों के

 हम जो आदी हुए अज़ाबों के

इश्क़ में पड़ गए हबाबों के


फूल भी फोन के कवर में हैं

अब ज़माने नहीं किताबों के


हमने पूछे नहीं सवाल अब तक

हैं मगर आस में जवाबों के


तेरी जुल्फों को छू न पाए जो,

पूछिए दर्द उन गुलाबों के


मेरा किरदार खो गया शायद

दरमियां खुश फ़हम निसाबों के


हाथ छलनी हैं साँस भारी है

हम तलबगार हैं गुलाबों के


क्या ही दरियाओं का करेंगे हम

हम जो शौक़ीन हैं सराबों के


 तुम न लौटोगे जानते हैं हम

मुन्तज़िर हैं तुम्हारे ख्वाबों के


नकुल

Monday, 17 March 2025

ग़ज़ल - मुझको मेरे फ़र्ज़ ने ज़िन्दा रक्खा है

 मुझको मेरे फ़र्ज़ ने ज़िन्दा रक्खा है

साफ़ कहें तो क़र्ज़ ने ज़िन्दा रक्खा है


सब कहते हैं इश्क़ बुरी है बीमारी

मुझको तो इस मर्ज़ ने ज़िन्दा रक्खा है


गा कर उसने इक दिन शेर सुनाया था

मुझको उस की तर्ज़ ने ज़िन्दा रक्खा है


 चाहत की फेहरिस्तें ख़त्म नहीं होती

यार! दिले ख़ुदग़र्ज़ ने ज़िन्दा रक्खा है


उसने मुझको चाय पिलाई थी इक दिन

बाकी खाते दर्ज़ ने ज़िन्दा रक्खा है

Sunday, 16 March 2025

क़ता - चाय


मेरी उम्मीद उसने तोड़ दी है

कहानी बीच में ही मोड़ दी है

मुलाकातें नहीं होती अब उनसे

सो हमने चाय पीना छोड़ दी है