Saturday 20 January 2018

ज़ख्म दे जाये अब नये कोई


क्यों पुराने ही ग़म सहे कोई
ज़ख्म दे जाये अब नये कोई

रेगज़ारों से ही शिकायत क्यों
बादलों से भी कुछ कहे कोई

बात सब उलझनों की करते हैं
ढूंढता ही नहीं सिरे कोई

शायरी हिज्र ही में होती है
वस्ल पर क्या भला कहे कोई

आस लेकर गली में लौटा हूँ
काश खिड़की खुली मिले कोई

मौत मेरा नया बहाना है,
जाये उनको खबर करे कोई

डायरी पर दिखे तिरी सूरत
मेरे अशआर जब पढ़े कोई

दोस्तों में है नाम मेरा भी,
हाय! मुझ पर यकीं करे कोई



----
कुछ अन्य अशआर

गोल बर्फ़ी है या बताशा है
चाँद को भी ज़रा चखे कोई

आखिर उसको ख़ुदा मैं क्यों मानूँ,
जानता ही नहीं जिसे कोई

रूठ जाया करे यूँ ही मुझसे,
मुझ से झगड़ा किया करे कोई

अश्कबारी, घुटन, अकेलापन
इश्क़ पर क्या नया लिखे कोई