हल्की सी मुस्कान थी सादा लड़का था
और' मन से इरशाद, सिकंदर जैसा था
यूं तो दिखने में कम ही था उसका कद
शाइर वो अच्छे अच्छों से ऊंचा था
धीरे धीरे कह देता था गहरी बात
और' फिर कुछ ही देर में खुल कर हंसता था
कहता था फिर इश्क़ उसी से करना है
जिससे उसका पहला इश्क़ अधूरा था
मुझ से मिलने घर पर आया था जिस दिन
रोशन मेरे घर का कोना कोना था
ज़ाहिर है जन्नत में इक महफिल होगी
जिसमें पढ़ने का उसको भी न्योता था
लगता है इक रोज़ ये कहते लौटेगा
चाय पिलाओ यार, समोसा ठंडा था
नकुल
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