Friday 25 December 2015

छिपाके यार तबस्सुम में बेक़रारी रख


लफ्ज़ पोर्टल की 27वीं तरही में एक प्रयास


ऐ दिल हमारे बस इक इल्तिजा हमारी रख
ये राज़ राज़ रहे थोड़ी होशियारी रख

इन आसुंओं पे लगा बाँध टूट जाने दे
बहा दे बोझ ऐ दिल! यूँ न ख़ुद को भारी रख

ज़रा तो सब्र से ले काम चाँद आने तक
“छिपाके यार तबस्सुम में बेक़रारी रख”

तिरे लिये ही तो आया हूँ मयकदे में फिर
दिले-मरीज़ मेरी लाज अब की बारी रख

‘नहीं-नहीं’ वो लिखें गर तो हाँ समझ लेना
हिसाब में ये मुहब्बत के जानकारी रख

ये राह आम नहीं है गली मुहब्बत की
ज़रा संभाल के ये उम्र की सवारी रख

कुछ एक पल की मुलाकात में धड़कना क्या?
तबाह दिल मेरे इतनी तो इन्किसारी रख

ये फूल चीड़* के जंगल में अब नहीं मिलते
‘नकुल’ सँभाल के बचपन की याद प्यारी रख