एक ग़ज़ल कुछ अलग अंदाज़ में कोशिश की है
देखिये कैसी रही
ग़ज़ल
दिल को साहिब खुद समझाना पड़ता है
भैंस के आगे बीन बजाना पड़ता है
दुनियादारी की अपनी है मजबूरी
हर नाके पर टोल चुकाना पड़ता है
जीवन के इन उबड़ खाबड़ रस्तों पर
हल्का हल्का ब्रेक लगाना पड़ता है
झूट का क्या है खुद ही पकड़ा जायेगा
सच को लेकिन प्रूफ़ दिखाना पड़ता है
ज़िम्मेदारी है सब की अपनी अपनी
अपना अपना रोल निभाना पड़ता है
दिल का मैल दिखेगा आखिर कितनों को
घर के शीशों को चमकाना पड़ता है
अपनी अपनी ढफली है सब रिश्तों की
सबको अपना राग सुनाना पड़ता है