Tuesday 28 March 2017

दिल को साहिब ख़ुद समझाना पड़ता है


एक ग़ज़ल कुछ अलग अंदाज़ में कोशिश की है
देखिये कैसी रही


ग़ज़ल

दिल को साहिब खुद समझाना पड़ता है
भैंस के आगे बीन बजाना पड़ता है

दुनियादारी की अपनी है मजबूरी
हर नाके पर टोल चुकाना पड़ता है

जीवन के इन उबड़ खाबड़ रस्तों पर
हल्का हल्का ब्रेक लगाना पड़ता है

झूट का क्या है खुद ही पकड़ा जायेगा
सच को लेकिन प्रूफ़ दिखाना पड़ता है

ज़िम्मेदारी है सब की अपनी अपनी
अपना अपना रोल निभाना पड़ता है

दिल का मैल दिखेगा आखिर कितनों को
घर के शीशों को चमकाना पड़ता है

अपनी अपनी ढफली है सब रिश्तों की
सबको अपना राग सुनाना पड़ता है

Thursday 9 March 2017

खेलें होली चलो इक नए रंग में


फ्रेम कर लें सजा कर लम्हे रंग में
खेलें होली चलो इक नए रंग में

हो गयी है पुरानी मुहब्बत मगर
हैं ये किस्से नये के नये रंग में

धूप सेंकें पहाड़ों की मुद्दत के बाद
कर लें माज़ी नया धूप के रंग में

उस पहाड़ी पे कैफ़े खुला है नया
चल मुहब्बत पियें चाय के रंग में

एक भँवरे ने बोसा लिया फूल का
झूम उठी डालियाँ मद भरे रंग में

प्रिज़्म शरमा न जाये तुझे देख कर
रंग मुझको दिखें सब तेरे रंग में

जब से बूढ़ी हुई, हो गयी तू खड़ूस
डेट पर ले चलूँ क्या तुझे रंग में

चल पकौड़े खिलाऊँ तुझे मॉल पर
औ' पुदीने की चटनी हरे रंग में

आज बच्चों ने ऐसे रँगा है मुझे
घोल कर हैं जवानी गए रंग में

हम गली पर टिकाये हुए थे नज़र
और बच्चे थे छत पर डटे रंग में

छोड़ बच्चे गये अपनी पिचकारियाँ
मेरा बचपन दिखाया मुझे रंग में

एक दिन के लिए छोड़ भी दो किचन
"आओ रँग दूँ तुम्हे इश्क़ के रंग में"

Monday 6 March 2017

यूँ सजाया है समुन्दर का किनारा किसने


ग़ज़ल


यूँ सजाया है समुन्दर का किनारा किसने
साथ मेरे है लिखा नाम तुम्हारा किसने

देखने में थे चरागों के सभी रखवाले
फिर किया तेज़ हवाओं को इशारा किसने


आज रब ने हैं सुनी माँ की दुआएं शायद
चार टुकड़ों में बंटे घर को सँवारा किसने

मेरी तन्हाई कहीं रूठ न जाए मुझसे
दश्त में नाम मिरा ले के पुकारा किसने

इन सराबों को भला किसने बनाया होगा
"फिर मुझे रेत के दलदल में उतारा किसने"

मुझसे मिलने को जुटे हैं ये गली के पत्थर
मेरी आमद का दिया इनको इशारा किसने

कौन है जिसको मेरा दर्द नज़र आया है
यूँ बिलखती हुई नज़रों से निहारा किसने

कौन है अब भी मुझे दोस्त समझने वाला
दर्द को मेरे भला फिर से उभारा किसने

झूट का साथ तुझे देना पड़ा आखिरकार
भूत सच का ये तेरे सर से उतारा किसने

आज क़ातिल ने मेरे ख़ूब सताया मुझको
पूछता था की नकुल आपको मारा किसने