Monday 10 November 2014

ग़ज़ल - लफ्ज़ मेरे रात भर मुझ से लड़े हैं


आदरणीय गुरुदेव द्विजेन्द्र 'द्विज' जी और संपादक माननीय नवनीत जी के आशीर्वाद से मेरी इस ग़ज़ल को ३० जुलाई २०१५ को धर्मशाला से प्रकशित दैनिक जागरण, के अभिनव पृष्ठ पर स्थान मिला।

लफ्ज़ मेरे रात भर मुझ से लड़े हैं

मेज़ के नीचे फटे कागज़ पड़े हैं,
लफ्ज़ मेरे रात भर मुझ से लड़े हैं

बाढ़ में कितने भी घर संसार डूबें,
कागज़ी भाषा में ये बस आंकड़े हैं

रुख़ हवा का अब चरागों से ही पूछो,
रात भर तूफ़ां से ये तनहा लड़े हैं

फ़लसफ़ा हमने दरख्तों से ये सीखा,
फल हैं जिन पर उनपे ही पत्थर पड़े हैं

हम कभी जिस खेत में मिल कर थे खेले,
मिलकियत पे उसकी अब झगड़े खड़े हैं

भीड़ हो जाते जो होते भीड़ में हम,
मील का पथ्थर हैं सो तनहा खड़े हैं

सब चुनावी काग प्यासे जा चुके हैं,
कंकड़ों में रह गए सूखे घड़े हैं

मुंतज़िर जिनके रहे हैं हम हमेशा,
वो मनाएं हम अब इस ज़िद पे अड़े हैं

है फकीरी में भी उनकी बादशाहत,
जिनके दिल में सब्र के हीरे जड़े हैं

बाग़बाँ से पूछियेगा हाल दिल का
देखिये फिर बाग़ में पत्ते झड़े हैं

खोदने होंगे 'नकुल' तुमको कुँए भी
है बड़ी ग़र प्यास रस्ते भी बड़े हैं

    



Friday 31 October 2014

मिल गया मुझको भी राशन BPL के रेट पर


एक दस का नोट दे सस्ती दुकां के गेट पर,
मिल गया मुझको भी राशन BPL के रेट पर ||

लिस्ट में दिखता गरीबों की वो नंबर वन पे है,
प्लेट खाने की टिका सकता है बेशक पेट पर ||

बच गया सिग्नल के सब श्वेताम्बरी दूतों से मैं,
जब से चिपकाया चुनावी इक निशां हेलमेट पर ||

जब से घर बनवा लिया है, इस भरी महंगाई में,
मैं नहीं ले जा सका बेग़म को तब से डेट पर ||

फूल अब मिलते हैं प्रियवर आसमानी दाम पर,
जन्मदिन शुभकामना भेजी है इंटरनेट पर ||

ग्रह दशा कैसी भी हो, घबराओ मत यजमान तुम,
कुछ हरे कागज़ चढ़ा दो दक्षिणा में प्लेट पर ||

वो भी क्या दिन थे हसीं बचपन के, जम हम थे रईस,
हम बना लेते थे सोने के महल भी स्लेट पर ||

सच कहो या झूठ, पर तारीफ बेग़म की करो,
भूल कर भी मत करो कॉमेंट उनके वेट पर ||

सैलरी के दूसरे दिन आज फिर सूखा पड़ा,
लिख दिया To-let मैंने आज फिर वॉलेट पर ||

वाहवाही सुन के फूलो मत 'नकुल' तुम इस कदर,
ये ज़माना है चढ़ा देगा तुम्हे इवरेस्ट पर ||

Tuesday 21 October 2014

इश्तिहारों ने ही अखबार संभाले हुए हैं


लफ्ज़ पोर्टल के 20वें तरही मुशायरे में सम्मिलित हुई मेरी ये ग़ज़ल

रुख हवा का भी खरीदार संभाले हुए हैं,
इश्तिहारों ने ही अखबार संभाले हुए हैं ||

हर तरफ फ़ैल रही है जो वबा लालच की
अब तबीबों ने भी बाज़ार संभाले हुए हैं ||

कर रही है ये बयानात का सौदा खुल के,
ये अदालत भी गुनहगार संभाले हुए हैं ||

आप का हुस्न तो परवाने बयान करते हैं,
आइना आप ये बेकार संभाले हुए हैं ||

अब वसीयत ही अयादत का सबब हो शायद,
हम नगीने जो चमकदार संभाले हुए हैं ||

आप कह दें तो हक़ीक़त भी बने अफ़साना,
आप की बात तरफदार संभाले हुए हैं ||

पासबां लूट रहे हैं ये ख़ज़ाने मिल कर,
मयकदे आज तलबगार संभाले हुए हैं ||

कोशिशें आप करें लाख गिराने की घर,
हम तो हर हाल में दीवार संभाले हुए हैं||

क्या बढ़ाएंगे मेरा दर्द मुखालिफ मेरे,
काम मेरा ये मेरे यार संभाले हुए हैं ||

बेड़ियां तोड़ रहे हैं ये बदलते रिश्ते,
"आप ज़ंजीर की झंकार संभाले हुए हैं" ||

झूठ साये की तरह साथ चले दोज़ख़ तक,
ख्वामखाह आप ये रफ़्तार संभाले हुए हैं ||


Friday 8 August 2014

कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे


कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
कि मौसम सा बदलता है मिजाज़-ए-यार चुटकी मे !!

वही ठोकर लगाता है, वही मरहम लगाता है,
ख़ुदा के खेल मे, हम सब बने किरदार चुटकी मे !!

हबीबों की मेरी फेहरिस्त मे दो-चार मुश्किल से,
बिना ढूंढे ही मिलते हैं मुखालिफ चार चुटकी मे !!

ये दिल के ज़ख्म देते हैं, जो भर के भी नहीं भरते,
जुबां के तीर करते हैं खड़ी दीवार चुटकी में!!

महीनों से पड़ी सूनी हवेली मुह चिढ़ाती थी,
ये सेहरा कर गए पोते मेरे गुलज़ार चुटकी में!!

वो पैमाइश मेरे खेतों की मुझको ही बताता है,
मेरा बेटा खड़ा है बन के हिस्सेदार चुटकी में !!

जो सरहद पर चली गोली, पड़ी है एक कोने में,
हुए तस्वीर के चर्चे, भरे अखबार चुटकी में!!

भला होता, मै उनसे भी अगर नाआश्ना होता
तबीबों की हबीबी कर गयी बीमार चुटकी मे !!

Tuesday 29 July 2014

बुरे सपने मेरे, मुझे आजकल सोने नहीं देते


कभी मसले सियासत के, वो हल होने नहीं देते,
मसल कर, जुगनुओं को तीरगी धोने नहीं देते ||

बरसती थीं मुहब्बत की घटायें जिन मुहल्लों में,
फकीरों को गली में हाथ भी धोने नहीं देते !!

कभी खेला किये थे खेत में मिल जुल के जो घर-घर,
वो महलों में, हबीबों को भी अब कोने नहीं देते !!

गुज़र जाती थीं रातें, जो कभी गाने बजाने में,
ये कैसा खौफ, अब बच्चों को भी रोने नहीं देते !!

अजी सुन कर ये ख़बरें मुल्क के हालात की मौला,
बुरे सपने मिरे अक्सर मुझे सोने नहीं देते !!

Wednesday 4 June 2014

चलो कुछ देर चराग़ों को जलाया जाये


तेरे रुख़सार से चिलमन को हटाया जाये ,
चलो कुछ देर चराग़ों को "जलाया" जाये !!

सजा क देख बहारों में लिए हैं ग़ुलशन
चलो इस बार, कहीं दश्त सजाया जाये !!

मुझे ये लोग दिखाते जो मेरी सीरत हैं,
चलो इन आईनों को अक्स दिखाया जाये !!

पिला क देख चुके खूब शिलाओं को हम,
चलो पानी, ये परिन्दों को पिलाया जाये !!

भरे ज़ख्मों को लिए मयकदे में आये हैं ,
चलो मरहम ये तबीबों को लगाया जाये!!

दिलों के जलने, जलाने में रखा क्या आखिर
चलो घरबार रकीबों का बसाया जाये !!

सताया खूब है, इस लंबे सफर ने हम को,
चलो मंज़िल को भी अब थोड़ा थकाया जाये !!

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