Sunday 7 June 2020

ग़ज़ल हो गयी सो हो गयी



1212 1212 1212 112(22)
ऐसी कोई बह्र नहीं है
लेकिन ग़ज़ल हो गयी सो हो गयी


तुम्ही कहो रहें तो कैसे इत्मिनान से हम
कि खुल के सच भी कह सकें न जब ज़ुबान से हम

कई दिनों से इक ख़याल तक नहीं आया
पड़े हैं खाली इक किराये के मकान से हम

किसी ने मोड़ कर वरक हो जैसे छोड़ दिया
भुलाये जा चुके हों जैसे दास्तान से हम

उड़ान पर नहीं गये कि हम ख़लिश में थे
ये सोच कर कि क्या कहेंगे आसमान से हम

किसी को हो न हो उन्हें यक़ीन है हम पर
कई बरस तो ख़ुश रहे इसी गुमान से हम

ये ज़ख्मे दिल तुम्हे दिखायी तो नहीं देंगे
कई दिनों से हैं मगर लहू-लुहान से हम

हमें तो ख़ुद पे कुछ दिनों से ऐतबार नहीं
उमीद क्या करें वफ़ा की इस जहान से हम

चलो 'नकुल' सफ़र पे फिर कहीं निकल जायें
कि अब तो ऊब से गये हैं रूह-दान से हम

Saturday 6 June 2020



रूह गर यादों से छलनी हो तो नाहन आइये
चैन से गर आह भरनी हो तो नाहन आइये

गर दिसंबर-जनवरी में छुट्टियाँ मिल जाएं और'
बादलों पर सैर करनी हो तो नाहन आइये

सर्द मौसम हो कि गर्मी की उमस की ऊब हो
गर सुहानी धूप चखनी हो तो नाहन आइये

नौकरी से हों परेशां, इश्क़ में टूटा हो दिल
चैन की गर साँस भरनी हो तो नाहन आइये

वादियों में ज़ाविए भी आएँगे कुछ मख़मली
और ग़ज़ल ताज़ा जो कहनी हो तो नाहन आइये

रेणुका से मारकंडा तक बसा है देवलोक
स्वर्ग की सीढ़ी जो चढ़नी हो तो नाहन आइये

चीड़ के जंगल सुनाते हैं गज़ब की सिम्फ़नी
धुन कोई ताज़ा जो सुननी हो तो नाहन आइये

एक हैं सब हिन्दू, मुसलिम, सिक्ख-ईसाई, बौद्ध, जैन
बात इतनी सी समझनी हो तो नाहन आइये

गर्मियों की छुट्टियों में आएंगे अगले बरस
बात "गौतम जी" से करनी हो तो नाहन आइये

नकुल गौतम 😊