Friday 8 August 2014

कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे


कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
कि मौसम सा बदलता है मिजाज़-ए-यार चुटकी मे !!

वही ठोकर लगाता है, वही मरहम लगाता है,
ख़ुदा के खेल मे, हम सब बने किरदार चुटकी मे !!

हबीबों की मेरी फेहरिस्त मे दो-चार मुश्किल से,
बिना ढूंढे ही मिलते हैं मुखालिफ चार चुटकी मे !!

ये दिल के ज़ख्म देते हैं, जो भर के भी नहीं भरते,
जुबां के तीर करते हैं खड़ी दीवार चुटकी में!!

महीनों से पड़ी सूनी हवेली मुह चिढ़ाती थी,
ये सेहरा कर गए पोते मेरे गुलज़ार चुटकी में!!

वो पैमाइश मेरे खेतों की मुझको ही बताता है,
मेरा बेटा खड़ा है बन के हिस्सेदार चुटकी में !!

जो सरहद पर चली गोली, पड़ी है एक कोने में,
हुए तस्वीर के चर्चे, भरे अखबार चुटकी में!!

भला होता, मै उनसे भी अगर नाआश्ना होता
तबीबों की हबीबी कर गयी बीमार चुटकी मे !!