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हज़ल
तेरे दीदार से दिल में अगर हलचल नहीं होती
तो शायद ब्याह कर के ज़िंदगी दंगल नहीं होती
मेरी ज़ुल्फ़ें यकीनन आज भी सलमान सी होतीं
तुम्हारे पास गर कोल्हापुरी चप्पल नहीं होती
मैं कितनी बार पिटने से बचा हूँ, शुक्र है इनका
बताओ क्या हुआ होता जो ये पायल नहीं होती
मेरी ये ज़िन्दगी शायद हुआ करती ज़रा रंगीन
अगर उस दिन पड़ोसन आँख से ओझल नहीं होती
उसे देखूँ मैं जब भी इश्क़ के दौरे से उठते हैं
वो मुझ से इश्क़ कर लेती अगर पागल नहीं होती
मुहब्बत भी पड़ोसी से ही की ऐ आलसी औरत
मुहब्बत में ज़रा चलती तो यूँ क्विंटल नहीं होती
अगर तुम वक़्त रहते वज़्न कुछ कंट्रोल कर लेतीं
तो यूँ दब कर तुम्हारी एक्टिवा घायल नहीं होती
अगर पिछले महीने ही नहा लेता मैं जानेजां
तो अब भी शहर की पानी की दिक्कत हल नहीं होती
मेरी ये शायरी जानम तुम्हारी ही बदौलत है
अगर तुम पढ़ लिया करतीं तो यूँ चंचल नहीं होती
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