Wednesday 10 February 2016

हज़ल


हज़ल

सरे राह बारिश में छाता उड़ा कर तेरा भीग जाना गज़ब हो गया
जो होली के दिन भी नहीं थी नहाती तेरा कल नहाना गज़ब हो गया

तेरे सुर्ख़ होंठों पे ये मुस्कुराहट, नज़रबट्टुओं की हो जैसे बनावट
लहू पी के आई हो जैसे कहीं से, तेरा पान खाना गज़ब हो गया

खुली ज़ुल्फ़ है या हैं काली घटायें, जुओं का क़बीला तुझे दे दुआयें
ऐ मेरे मोहल्ले की सन्नी लियोनी, तेरा सर खुजाना गज़ब हो गया

वही क़ाफ़िये हैं वही ज़ाविये हैं, ज़मीनें हमारी क़िले आपके हैं
हमारी ग़ज़ल ही का मक़्ता बदल के हमीं को सुनाना गज़ब हो गया

मुहब्बत की बारिश का कैसा असर है, जिसे भी मैं देखूँ वही तर-ब-तर है
बुढ़ापे की दहलीज़ पर ऐसे-ऐसे मेरा गुल खिलाना गज़ब हो गया