Sunday, 6 July 2025

सोनेट है - 3

<p>कब ये सोचा था हमें होगी मुहब्बत

बोझ एहसासों का यूँ ढोना पड़ेगा

बेकली होगी, करेंगे गम शरारत 

और फुरकत में हमें रोना पड़ेगा


बढ़ चुका है मर्ज़ अब हद से ज़ियादा 

दर्द हम को खुशनुमा लगने लगा है

दोस्त भी देने लगे हम को दिलासा

इश्क़ कोई हादसा लगने लगा है


ढूंढती हैं क्यों उन्हें नजरें मुसलसल

क्यों हमें खुद को जताना पड़ रहा है

वो करें हमको नज़रंदाज़ हर पल

और हमको मुस्कुराना पड़ रहा है


क्यों हमें ज़िल्लत ये सहनी पड़ रही है

बात हम को मुँह से कहनी पड़ रही है

</P>

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