Tuesday 29 July 2014

बुरे सपने मेरे, मुझे आजकल सोने नहीं देते


कभी मसले सियासत के, वो हल होने नहीं देते,
मसल कर, जुगनुओं को तीरगी धोने नहीं देते ||

बरसती थीं मुहब्बत की घटायें जिन मुहल्लों में,
फकीरों को गली में हाथ भी धोने नहीं देते !!

कभी खेला किये थे खेत में मिल जुल के जो घर-घर,
वो महलों में, हबीबों को भी अब कोने नहीं देते !!

गुज़र जाती थीं रातें, जो कभी गाने बजाने में,
ये कैसा खौफ, अब बच्चों को भी रोने नहीं देते !!

अजी सुन कर ये ख़बरें मुल्क के हालात की मौला,
बुरे सपने मिरे अक्सर मुझे सोने नहीं देते !!