Friday 27 February 2015

जीत का मैंने हुनर जाना है


लफ्ज़ portal की 22 वीं तरही में मेरी एक कोशिश...


जीत का मैंने हुनर जाना है
हार उम्मीद का मर जाना है

आज़मा ले ये ज़माना मुझको
“आज हर हद से गुज़र जाना है”

रूह-दानी का मुक़द्दर तय है
टूट जाना है बिखर जाना है

आख़िरी ठौर चिता ही होगी
जाइये आप जिधर जाना है

दर्द सहने की हुई है आदत
चुटकुला सुन के बिफर जाना है

वक़्त के साथ बदल कर देखो
वक़्त को ख़ुद ही सुधर जाना है

मैं तबीबों का सताया हुआ हूँ
अब दवा दोगे तो मर जाना है

इक घडीसाज़ कहा करता था
वक़्त इक दिन ये ठहर जाना है

ख़ामख़ा ज़िद पे अड़े रहते हो
लौट आऊंगा मगर जाना है

मेरी तन्हाई बिलखती होगी
ये बहाना है कि घर जाना है

इसमें काँटों को सजा कर देखो
बाग़ दिल का ये संवर जाना है

Tuesday 17 February 2015

बचपना खोया हुआ फिर याद आता है मुझे


शेर बन के जब मेरा बेटा डराता है मुझे,
बालपन खोया हुआ फिर याद आता है मुझे ॥

कहकहे यारों के मेरे और टीचर की छड़ी,
इक पुराना चुटकुला अब भी रुलाता है मुझे ॥

खेल कर यारों के घर, फिर लौटना घर देर से,
अब भी चांटा माँ का पापा से बचाता है मुझे ||

हार कर इक बार फिर से खेलते थे हम कभी,
हारना अब खेल में क्यों चिड़चिड़ाता है मुझे ?

सांप सीढ़ी सी ये दुन्या, और लुड्डो सी ये रेस,
एक प्यादा अब भी रस्ते से हटाता है मुझे ||

Thursday 5 February 2015

सीढ़ियां चढ़ते हुए है कौन जो थकता न हो


क्या मिला है ज़िंदगी में जब तलक जज़्बा न हो?
सीढ़ियां चढ़ते हुए है कौन जो थकता न हो?

पेड़ से पक कर गिरे फल का मज़ा अपना ही है,
बस मसालों में पका फल क्यों भला खट्टा न हो

काटने और तोड़ने में फ़र्क़ तो रखिये जनाब,
ध्यान रखिये खिड़कियों से कांच ये छोटा न हो

लोन पर घर जो लिया किश्तों में दब के रह गए,
डर सताए अब के दस्तावेज़ में घपला न हो

नागफनियों से शहर के घर तो हैं सजवा लिये
रात -रानी गाँव में सूखी मिले, ऐसा न हो

खेलता है जिन खिलौनों से मेरा बेटा, 'नकुल' !
जो बनाता है इन्हें वो भी कहीं बच्चा न हो ।