ग़ज़ल कागज़ों में बस चली है गाँव के इक रुट में तब कहीं साहिब नज़र आये हैं मँहगे सूट में सच खड़ा है ढीट बन, ये क्या तमाशा है मियाँ नोट की ताकत मिला कर देखिये कुछ झूट में शर्म आती है कि जगता ही नहीं उनका ज़मीर एक हिस्सा जब तलक पाते *रहें* वो लूट में देश अपनी चाल से चलता है चलने दीजिये आप तो बस वोट गिनिये भाइयों की फूट में योजना कैसे करें लागू किसानों के लिए एक कौड़ी भी कमीशन तो नहीं है जूट में आप करदाता हैं, तो घर बैठ कर पढ़िये बजट और अब क्या चाहिए , बस मस्त रहिये छूट में कल अचानक ध्यान नेता जी का गड्ढों पर गया जल्दबाज़ी में भरा पानी जब उनके बूट में क्या कहा? फ़ाइल अभी तक मेज़ से सरकी नहीं नोट तो गिन कर नकुल रक्खे थे हमने फ्रूट में?
Tuesday 4 February 2020
कागज़ों में बस चली है गाँव के इक रुट में
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