कुछ दिन से खोया खोया हूँ माज़ी में कुछ ढूंढ रहा हूँ बच्चों से छिपता फिरता हूँ पिछली छुट्टी का वादा हूँ दुनिया को खुश रक्खूं कैसे मैं खुद को भी कम पड़ता हूँ थकने का भी वक़्त नहीं है देखो मैं आधा बूढ़ा हूँ मुझको रोक सको तो रोको मैं इक बच्चे का सपना हूँ हँसना तो पेशा है साहिब तन्हाई में रो लेता हूँ थोड़े सपने देख लिए थे वैसे मैं सीधा सादा हूँ चेहरे पर कुछ दर्द छपे हैं वैसे मैं अच्छा दिखता हूँ अखबारों में होता क्या है, बस मतलब का पढ़ लेता हूँ मुझको फिर से भूल गये हो पिछले मौसम का छाता हूँ मेरा पेशा पूछ रहे हो? सोच रहा हूँ मैं क्या क्या हूँ
Saturday 4 August 2018
कुछ दिन से खोया खोया हूँ
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