Saturday 4 August 2018

कुछ दिन से खोया खोया हूँ




कुछ दिन से खोया खोया हूँ
माज़ी में कुछ ढूंढ रहा हूँ

बच्चों से छिपता फिरता हूँ
पिछली छुट्टी का वादा हूँ

दुनिया को खुश रक्खूं कैसे
मैं खुद को भी कम पड़ता हूँ

थकने का भी वक़्त नहीं है
देखो मैं आधा बूढ़ा हूँ

मुझको रोक सको तो रोको
मैं इक बच्चे का सपना हूँ

हँसना तो पेशा है साहिब
तन्हाई में रो लेता हूँ

थोड़े सपने देख लिए थे
वैसे मैं सीधा सादा हूँ

चेहरे पर कुछ दर्द छपे हैं
वैसे मैं अच्छा दिखता हूँ

अखबारों में होता क्या है,
बस मतलब का पढ़ लेता हूँ

मुझको फिर से भूल गये हो
पिछले मौसम का छाता हूँ

मेरा पेशा पूछ रहे हो?
सोच रहा हूँ मैं क्या क्या हूँ