हमने जब से ये आशिक़ी कर ली
कुछ अजब सी ये ज़िन्दगी कर ली
रास आने लगा ये सन्नाटा
ज्यूँ ही लफ़्ज़ों से दोस्ती कर ली
अश्क़ मेरे कहीं न सुन लें वो
मैंने आवाज़ कुछ कड़ी कर ली
देर उनको हुई थी, क्या कहता
मैने पीछे मेरी घड़ी कर ली
हम ज़रा नर्म क्या पड़े, उसने
अपनी आँखें बड़ी बड़ी कर ली
बाद मुद्दत फिर उनसे मिलना था
हमने माज़ी पे इस्तरी कर ली
नाम कोने पे लिख लिया उनका
पाक़ हमने ये डायरी कर ली
अस्ल ख़बरें तो दब गयीं हैं कहीं
इश्तिहारों ने फिर ठगी कर ली
"आँख में कुछ गिरा है" कह माँ ने
जज़्ब आँखों में इक नदी कर ली
आप छत पर चढ़े तो बादल से
चाँद ने कल कहासुनी कर ली
साथ सच के 'नकुल' खड़े होकर
बेवकूफी बहुत बड़ी कर ली