Tuesday 1 March 2016

इज़्तिराबी अज़ाब की सी है


लफ्ज़ पोर्टल की 28वीं तरही में मेरी कोशिश हज़रते मीर तक़ी 'मीर' के मिसरे पर


इज़्तिराबी अज़ाब की सी है
उन से दूरी सराब की सी है

शायरी बिन तेरे तस्सव्वुर के
ख़ाली बोतल शराब की सी है

लब झिझकते हैं उसको छूने में
“पंखुड़ी इक ग़ुलाब की सी है”

सादगी से सजी तेरी सूरत
इक ग़ज़ल की किताब की सी है

ज़िन्दगी में कमी है लम्हों की
डायरी घर-हिसाब की सी है

उस इमारत की नींव में पीपल
इब्तिदा इंक़लाब की सी है

सिर्फ़ दीदार से नहीं भरता
दिल की फ़ितरत नवाब की सी है