Saturday 30 March 2019

पहाड़ों से


अब है जब सामना पहाड़ों से,
माँग कोई दुआ पहाडों से।

जब किया मश्विरा पहाड़ों से,
रास्ता मिल गया पहाड़ों से।

रास्ता तंग है ज़रा लेकिन,
रास्ता है सजा पहाड़ों से।

साथ ताउम्र थे समुंदर के,
इश्क़ ताउम्र था पहाड़ों से।

चाह कर भी कभी नहीं लौटा,
शहर जो भी गया पहाड़ों से।

मुश्किलें भी मिली पहाड़ों पर,
हौंसला भी मिला पहाड़ों से।

एक मीठी नदी निकलती है,
ख़ुश्क पत्थर नुमा पहाड़ों से।

बादलों ने कहा न जाने क्या,
चाँद छुपने लगा पहाड़ों से।

लौट आऊँगा मौत से पहले,
है ये वादा मेरा पहाड़ों से।

खेत बेरोज़गार हैं जब से
कारखाना सटा पहाड़ों से


Sunday 10 March 2019

दो ग़ज़ला


------1
जब तक न लौट आयें परिंदे उड़ान से
लगते हैं घोंसले ये मेरे ही मकान से

अब चाशनी का बोझ उतारें ज़बान से
तलवार जब निकल ही चुकी है मियान से

आये थे गमगुसार लिये ज़ख्म की दवा
घबरा गये अगरचे पुराने निशान से

दफ़्तर से लौटते हैं मुलाज़िम बुझे बुझे
पत्थर लुढ़क रहे हों कि जैसे ढलान से

बाज़ार में तो खूब है कीमत अनाज की
मत पूछियेगा फिर भी कमाई किसान से

बरसों से वज़्न  झूट का तारी है रूह पर
तकलीफ़ हो रही है तभी तो अज़ान से

2212 1211 2212 12
ताउम्र भागते थे जो दौलत बटोरते
सोये हुए हैं देखिये सब इत्मीनान से
जंगल पहाड़ बर्फ़ समंदर नदी हवा
क्या खूब मौजज़े हैं घिरे आसमान से

घर से हटा तो लोगे सभी आईने मगर
कब तक बचे रहोगे नकुल इम्तिहान से

-----2

दो पल जो देख लूँ मैं उन्हे इत्मिनान से
मिल जाये कुछ निजात मुसलसल थकान से

उसने नज़र उठा के झुकायी ज़रूर थी
पर फिर पलट गयीं थी निगाहें बयान से

भँवरे उदास उदास हैं मायूस हैं ग़ुलाब
हो कर ख़फ़ा गये थे वो कल गुलसितान से

वादों की कोई फिक्र न मिलने का इंतज़ार
दिल जब लगा लिया हो किसी बेईमान से

मुझ से मेरे ग़मों पे सवालात छोड़िये
ऊंचाई पूछिये ना कभी आसमान से

गलती से उसने फोन मिलाया था कल् मुझे
पूछे न हाल कोई दिले बेज़ुबान से

सुर्खी ये शर्म से है कि गुस्से का है कमाल
मिलती है शक्ल देखिये ज़ीनत अमान से

लिखकर उन्हें जो पोस्ट किये ही नहीं कभी
रक्खे हुए हैं ख़त वो किताबों में शान से