छोड़ हरम और दैर की बातें
क्यों करते हो बैर की बातें
हमको तो अच्छी लगती हैं
उसकी बे सिर पैर की बातें
अपनों का कुछ ध्यान नहीं है
करते हो बस ग़ैर की बातें
कहने सुनने को था ही क्या
मिल ही गये हम ख़ैर, की बातें
आज भी हम दुहरा लेते हैं
बाग़ीचे में सैर की बातें