Thursday 17 September 2020

क्यों करते हो बैर की बातें

 छोड़ हरम और दैर की बातें

क्यों करते हो बैर की बातें


हमको तो अच्छी लगती हैं
उसकी बे सिर पैर की बातें

अपनों का कुछ ध्यान नहीं है
करते हो बस ग़ैर की बातें

कहने सुनने को था ही क्या
मिल ही गये हम ख़ैर, की बातें

आज भी हम दुहरा लेते हैं
बाग़ीचे में सैर की बातें


Sunday 7 June 2020

ग़ज़ल हो गयी सो हो गयी



1212 1212 1212 112(22)
ऐसी कोई बह्र नहीं है
लेकिन ग़ज़ल हो गयी सो हो गयी


तुम्ही कहो रहें तो कैसे इत्मिनान से हम
कि खुल के सच भी कह सकें न जब ज़ुबान से हम

कई दिनों से इक ख़याल तक नहीं आया
पड़े हैं खाली इक किराये के मकान से हम

किसी ने मोड़ कर वरक हो जैसे छोड़ दिया
भुलाये जा चुके हों जैसे दास्तान से हम

उड़ान पर नहीं गये कि हम ख़लिश में थे
ये सोच कर कि क्या कहेंगे आसमान से हम

किसी को हो न हो उन्हें यक़ीन है हम पर
कई बरस तो ख़ुश रहे इसी गुमान से हम

ये ज़ख्मे दिल तुम्हे दिखायी तो नहीं देंगे
कई दिनों से हैं मगर लहू-लुहान से हम

हमें तो ख़ुद पे कुछ दिनों से ऐतबार नहीं
उमीद क्या करें वफ़ा की इस जहान से हम

चलो 'नकुल' सफ़र पे फिर कहीं निकल जायें
कि अब तो ऊब से गये हैं रूह-दान से हम

Saturday 6 June 2020



रूह गर यादों से छलनी हो तो नाहन आइये
चैन से गर आह भरनी हो तो नाहन आइये

गर दिसंबर-जनवरी में छुट्टियाँ मिल जाएं और'
बादलों पर सैर करनी हो तो नाहन आइये

सर्द मौसम हो कि गर्मी की उमस की ऊब हो
गर सुहानी धूप चखनी हो तो नाहन आइये

नौकरी से हों परेशां, इश्क़ में टूटा हो दिल
चैन की गर साँस भरनी हो तो नाहन आइये

वादियों में ज़ाविए भी आएँगे कुछ मख़मली
और ग़ज़ल ताज़ा जो कहनी हो तो नाहन आइये

रेणुका से मारकंडा तक बसा है देवलोक
स्वर्ग की सीढ़ी जो चढ़नी हो तो नाहन आइये

चीड़ के जंगल सुनाते हैं गज़ब की सिम्फ़नी
धुन कोई ताज़ा जो सुननी हो तो नाहन आइये

एक हैं सब हिन्दू, मुसलिम, सिक्ख-ईसाई, बौद्ध, जैन
बात इतनी सी समझनी हो तो नाहन आइये

गर्मियों की छुट्टियों में आएंगे अगले बरस
बात "गौतम जी" से करनी हो तो नाहन आइये

नकुल गौतम 😊

Tuesday 4 February 2020

कागज़ों में बस चली है गाँव के इक रुट में


ग़ज़ल

कागज़ों में बस चली है गाँव के इक रुट में
तब कहीं साहिब नज़र आये हैं मँहगे सूट में

सच खड़ा है ढीट बन, ये क्या तमाशा है मियाँ
नोट की ताकत मिला कर देखिये कुछ झूट में

शर्म आती है कि जगता ही नहीं उनका ज़मीर
एक हिस्सा जब तलक पाते *रहें* वो लूट में

देश अपनी चाल से चलता है चलने दीजिये
आप तो बस वोट गिनिये भाइयों की फूट में

योजना कैसे करें लागू किसानों के लिए
एक कौड़ी भी कमीशन तो नहीं है जूट में

आप करदाता हैं, तो घर बैठ कर पढ़िये बजट
और अब क्या चाहिए , बस मस्त रहिये छूट में

कल अचानक ध्यान नेता जी का गड्ढों पर गया
जल्दबाज़ी में भरा पानी जब उनके बूट में

क्या कहा? फ़ाइल अभी तक मेज़ से सरकी नहीं
नोट तो गिन कर नकुल रक्खे थे हमने फ्रूट में?