tag:blogger.com,1999:blog-21477111646524248952024-03-12T17:26:55.460-07:00weaselA beginning of my ghazalsनकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.comBlogger60125tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-1852190144869899622021-12-10T18:38:00.000-08:002021-12-10T18:38:01.114-08:00कहीं बेचैन से दीपक कहीं हैं सिरफिरे दीपक<p> </p><p><br /></p><p>कहीं बेचैन से दीपक कहीं हैं सिरफिरे दीपक</p><p>किसी ज़िद्दी से आशिक़ की तरह शब भर जले दीपक</p><p><br /></p><p>मुखालिफ़ हैं बुराई के सभी घर-घर डटे दीपक</p><p>"उजाले के मुहाफ़िज़ हैं, तिमिर से लड़ रहे दीपक"</p><p><br /></p><p>है मिट्टी ही मगर गुज़री है कूज़ागर के हाथों से</p><p>कोई मूरत हुई तेरी तो कुछ से बन गए दीपक</p><p><br /></p><p>न अंधेरे में शिद्दत है न परवाने जुनूनी हैं</p><p>भला किसके लिये अब इन हवाओं से लड़े दीपक</p><p><br /></p><p>है दीवाली बहाना शहर से बच्चों के आने का</p><p>सजा रक्खे हैं नानी ने कई छोटे बड़े दीपक</p><p><br /></p><p>हुई मुद्दत की शब भर घी पिलाती थी इन्हें अम्मा</p><p>लगें बीमार अब झालर की रौनक से दबे दीपक</p><p><br /></p><p>किसी शाइर के मन में रात दिन पकते खयालों से</p><p>किसी को रौशनी देंगे ये भट्ठी में पके दीपक</p><p><br /></p><p>भरे बाज़ार थे हर सू फिरंगी लालटेनों से</p><p>दिलेरी से पुराने चौक पर मुस्तैद थे दीपक</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p>नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-13685983964645952962021-12-01T21:09:00.000-08:002021-12-01T21:09:18.905-08:00जमी घास पर दोपहर तक है शबनम<p> </p><p>जमी घास पर दोपहर तक है शबनम</p><p>कोई कर गया आँच सूरज की मद्धम</p><p><br /></p><p>हरी पत्तियाँ क्यों मनाएँगी मातम</p><p>ये गिरने से पहले सुनायेंगी सरगम</p><p><br /></p><p>है जादू पहाड़ों की ताज़ा हवा का</p><p>कि मीलों चलें फिर भी घुटता नहीं दम</p><p><br /></p><p>कभी धूप आये कभी छाये कोहरा</p><p>ये मौसम कहीं ख़ुश्क है तो कहीं नम</p><p><br /></p><p>जो बादल अभी सुस्त से दिख रहे हैं</p><p>ये सब जनवरी में दिखाएंगे दम खम</p><p><br /></p><p>बहाना मिले आप मिलने जो आएं</p><p>मेरी आजकल चाय होती है कुछ कम</p><p><br /></p><p>निकलते नहीं दिन ढले आप बाहर</p><p>सो छत पर नहीं दिख रहे शाम को हम</p><p><br /></p><p>हिमाचल में हूँ इस बरस इत्तफाकन</p><p>यहाँ सर्दियों का गुलाबी है मौसम</p><p><br /></p><p>अभी वक़्त है बर्फ़ गिरने में थोड़ा</p><p>यहाँ जल्द होगा सफेदी का परचम</p><p><br /></p><p>नकुल गौतम</p>नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-80022035367487562152021-10-30T09:54:00.002-07:002021-10-30T09:54:29.667-07:00हज़ल<p> <Pre></p><p>हज़ल</p><p><br /></p><p><br /></p><p>तेरे दीदार से दिल में अगर हलचल नहीं होती</p><p>तो शायद ब्याह कर के ज़िंदगी दंगल नहीं होती</p><p><br /></p><p>मेरी ज़ुल्फ़ें यकीनन आज भी सलमान सी होतीं</p><p>तुम्हारे पास गर कोल्हापुरी चप्पल नहीं होती</p><p><br /></p><p>मैं कितनी बार पिटने से बचा हूँ, शुक्र है इनका</p><p>बताओ क्या हुआ होता जो ये पायल नहीं होती</p><p><br /></p><p>मेरी ये ज़िन्दगी शायद हुआ करती ज़रा रंगीन</p><p>अगर उस दिन पड़ोसन आँख से ओझल नहीं होती</p><p><br /></p><p>उसे देखूँ मैं जब भी इश्क़ के दौरे से उठते हैं</p><p>वो मुझ से इश्क़ कर लेती अगर पागल नहीं होती</p><p><br /></p><p>मुहब्बत भी पड़ोसी से ही की ऐ आलसी औरत</p><p>मुहब्बत में ज़रा चलती तो यूँ क्विंटल नहीं होती</p><p><br /></p><p>अगर तुम वक़्त रहते वज़्न कुछ कंट्रोल कर लेतीं</p><p>तो यूँ दब कर तुम्हारी एक्टिवा घायल नहीं होती</p><p><br /></p><p><br /></p><p>अगर पिछले महीने ही नहा लेता मैं जानेजां</p><p>तो अब भी शहर की पानी की दिक्कत हल नहीं होती</p><p><br /></p><p><br /></p><p>मेरी ये शायरी जानम तुम्हारी ही बदौलत है</p><p>अगर तुम पढ़ लिया करतीं तो यूँ चंचल नहीं होती</p><p></Pre></p>नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-48060088971275996122021-04-16T23:31:00.000-07:002021-04-16T23:31:02.092-07:00नज़र आया तो वो दिल में उतरकर मार डालेगा<p>तीन साल पुरानी</p><p>एक गुमशुदा #ग़ज़ल</p><p><br /></p><p>बिला दीदार यादों का बवंडर मार डालेगा</p><p>नज़र आया तो वो दिल में उतरकर मार डालेगा</p><p><br /></p><p>तुम्हारा जनवरी का वाइदा तो ठीक है लेकिन</p><p>मुझे फ़ुर्क़त का ये ज़ालिम दिसम्बर मार डालेगा</p><p><br /></p><p>तुम्हे पहला निवाला घूटते ही फिक्र है कल की</p><p>तुम्हारे आज को बेवज्ह यह डर मार डालेगा</p><p><br /></p><p>हमें था शौक़ छाती तान कर हर जंग लड़ने का (तकाबूले रदीफ़)</p><p>किसे मालूम था वो तीर छिपकर मार डालेगा</p><p><br /></p><p>ज़रा सा इल्म होने पर ख़ुदा खुद को समझता है</p><p>तुझे भी वक़्त आने पर मुकद्दर मार डालेगा</p><p><br /></p><p>#नकुल</p><p>SheshDhar Tiwari जी के आदेश पर दो साल पहले</p><p>जैन साहब द्वारा याद दिलाने पर</p><p>आप सब की नज़्र</p>नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-38659983566717865342021-04-16T22:51:00.006-07:002021-04-16T23:27:03.204-07:00ऐसा भी वक़्त हमने गुज़ारा कहीं कहीं<p> <pre></p><p><br /></p><p>यादों का रात भर था सहारा कहीं कहीं</p><p>ऐसा भी वक़्त हमने गुज़ारा कहीं कहीं</p><p><br /></p><p>भँवरे के साथ फूल भी डूबे हैं इश्क़ में</p><p>दिलचस्प हो रहा है नज़ारा कहीं कहीं</p><p><br /></p><p>पक्का जो डूबने का इरादा हुआ मेरा</p><p>नज़दीक दिख रहा है किनारा कहीं कहीं</p><p><br /></p><p>ये इश्क़ समुंदर है कि बारिश की बूँद है</p><p>मीठा कहीं कहीं तो है खारा कहीं कहीं</p><p><br /></p><p>अच्छा हुआ कि इश्क़ दुबारा नहीं हुआ</p><p>दिल तो मचल रहा था हमारा कहीं कहीं</p><p><br /></p><p>कुछ इस लिये भी राह लगी खुशनुमा हमें</p><p>तुमने सफ़र में हमको पुकारा कहीं कहीं</p><p></pre></p>नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-92017498553260040412020-09-17T23:50:00.003-07:002020-09-17T23:50:17.915-07:00क्यों करते हो बैर की बातें<p> छोड़ हरम और दैर की बातें</p><p>क्यों करते हो बैर की बातें</p>
<br />
हमको तो अच्छी लगती हैं<br />
उसकी बे सिर पैर की बातें<br />
<br />
अपनों का कुछ ध्यान नहीं है<br />
करते हो बस ग़ैर की बातें<br />
<br />
कहने सुनने को था ही क्या<br />
मिल ही गये हम ख़ैर, की बातें<br />
<br />
आज भी हम दुहरा लेते हैं<br />
बाग़ीचे में सैर की बातें<br />
<br />
<br />
<!--/data/user/0/com.samsung.android.app.notes/files/share/clipdata_200918_121934_538.sdoc-->नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-2815151351351145922020-06-07T06:56:00.002-07:002020-09-17T23:49:19.928-07:00ग़ज़ल हो गयी सो हो गयी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<Pre>
1212 1212 1212 112(22)
ऐसी कोई बह्र नहीं है
लेकिन ग़ज़ल हो गयी सो हो गयी
तुम्ही कहो रहें तो कैसे इत्मिनान से हम
कि खुल के सच भी कह सकें न जब ज़ुबान से हम
कई दिनों से इक ख़याल तक नहीं आया
पड़े हैं खाली इक किराये के मकान से हम
किसी ने मोड़ कर वरक हो जैसे छोड़ दिया
भुलाये जा चुके हों जैसे दास्तान से हम
उड़ान पर नहीं गये कि हम ख़लिश में थे
ये सोच कर कि क्या कहेंगे आसमान से हम
किसी को हो न हो उन्हें यक़ीन है हम पर
कई बरस तो ख़ुश रहे इसी गुमान से हम
ये ज़ख्मे दिल तुम्हे दिखायी तो नहीं देंगे
कई दिनों से हैं मगर लहू-लुहान से हम
हमें तो ख़ुद पे कुछ दिनों से ऐतबार नहीं
उमीद क्या करें वफ़ा की इस जहान से हम
चलो 'नकुल' सफ़र पे फिर कहीं निकल जायें
कि अब तो ऊब से गये हैं रूह-दान से हम
</Pre>
</div>
नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-69737628353406891662020-06-06T01:26:00.000-07:002020-06-06T01:26:03.495-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<Pre>
रूह गर यादों से छलनी हो तो नाहन आइये
चैन से गर आह भरनी हो तो नाहन आइये
गर दिसंबर-जनवरी में छुट्टियाँ मिल जाएं और'
बादलों पर सैर करनी हो तो नाहन आइये
सर्द मौसम हो कि गर्मी की उमस की ऊब हो
गर सुहानी धूप चखनी हो तो नाहन आइये
नौकरी से हों परेशां, इश्क़ में टूटा हो दिल
चैन की गर साँस भरनी हो तो नाहन आइये
वादियों में ज़ाविए भी आएँगे कुछ मख़मली
और ग़ज़ल ताज़ा जो कहनी हो तो नाहन आइये
रेणुका से मारकंडा तक बसा है देवलोक
स्वर्ग की सीढ़ी जो चढ़नी हो तो नाहन आइये
चीड़ के जंगल सुनाते हैं गज़ब की सिम्फ़नी
धुन कोई ताज़ा जो सुननी हो तो नाहन आइये
एक हैं सब हिन्दू, मुसलिम, सिक्ख-ईसाई, बौद्ध, जैन
बात इतनी सी समझनी हो तो नाहन आइये
गर्मियों की छुट्टियों में आएंगे अगले बरस
बात "गौतम जी" से करनी हो तो नाहन आइये
नकुल गौतम 😊
</Pre>
</div>
नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-57600903831310212172020-02-04T06:40:00.005-08:002020-02-04T06:48:12.709-08:00 कागज़ों में बस चली है गाँव के इक रुट में<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<pre>
ग़ज़ल
कागज़ों में बस चली है गाँव के इक रुट में
तब कहीं साहिब नज़र आये हैं मँहगे सूट में
सच खड़ा है ढीट बन, ये क्या तमाशा है मियाँ
नोट की ताकत मिला कर देखिये कुछ झूट में
शर्म आती है कि जगता ही नहीं उनका ज़मीर
एक हिस्सा जब तलक पाते *रहें* वो लूट में
देश अपनी चाल से चलता है चलने दीजिये
आप तो बस वोट गिनिये भाइयों की फूट में
योजना कैसे करें लागू किसानों के लिए
एक कौड़ी भी कमीशन तो नहीं है जूट में
आप करदाता हैं, तो घर बैठ कर पढ़िये बजट
और अब क्या चाहिए , बस मस्त रहिये छूट में
कल अचानक ध्यान नेता जी का गड्ढों पर गया
जल्दबाज़ी में भरा पानी जब उनके बूट में
क्या कहा? फ़ाइल अभी तक मेज़ से सरकी नहीं
नोट तो गिन कर नकुल रक्खे थे हमने फ्रूट में?
</pre>
</div>
नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-74718452719660725142019-09-23T09:53:00.000-07:002019-09-23T09:53:00.522-07:00हमने सब सच सच बतला कर गलती की<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<pre>
जे लो
दुनिया की बातों में आ कर गलती की
हमने सब सच सच बतला कर गलती की
वो मेरी खामोशी खूब समझता था
मैंने बातों में उलझा कर गलती की
एक अरसे के बाद मिली थी कुछ फुर्सत
हमने उनको फोन लगा कर गलती की
तन्हाई भी अब तनहा सी लगती है
घर से वो तस्वीर हटाकर गलती की
उनकी फितरत से पहले ही वाकिफ थे
हमने ही तो हाथ बढ़ा कर गलती की
धीरे धीरे ख़ुद जैसा ही कर डाला
हमने बच्चों को समझा कर गलती की
सहराओं को खुद ही कुछ करना होगा
बादल से उम्मीद लगाकर गलती की
भद्दी सी तस्वीर लगाना काफी था
ग़ज़लों पर दिन रात खपा कर गलती की
उसका राह बदल कर जाना वाजिब था
हमने ही आवाज़ लगाकर गलती की
लोग दिखावा करने में भी माहिर थे
हमने भी जज़्बात में आ कर गलती की
</pre>
</div>
नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-47374660762061536392019-04-30T08:11:00.003-07:002019-04-30T08:11:35.503-07:00शिकवा किया न मैंने कभी कुछ गिला किया<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<pre>
तक़दीर ने मज़ाक बड़े से बड़ा किया
शिकवा किया न मैंने कभी कुछ गिला किया
जिस ने मेरी वफ़ा पर उठाये कई सवाल
मैंने उसी से इश्क़ कई मर्तबा किया
बच्चे तो लड़ झगड़ के दोबारा गले लगे
बेकार ही बड़ों ने तमाशा खड़ा किया
मौसम चुनाव का है ग़ज़ल इश्क़ पर हुई
हमको सुकून है कि चलो कुछ नया किया
बेवक्त चार लोग अयादत को आ गये
बेवज्ह चाय का भी मज़ा किरकिरा किया
आखिर उसी की रायशुमारी बचा सकी
हमने तमाम उम्र जिसे अनसुना किया
कुछ देर को मुझे तो हुआ ही नहीं यक़ीन
उसने गले लगा के यूँ हैरतज़दा किया
मैं अपनी ख्वाहिशों से परेशान था मगर
फिर भी मेरे हिसाब से जितना हुआ, किया
</pre>
</div>
नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-37119639551016758942019-04-03T22:18:00.005-07:002019-04-03T22:18:55.298-07:00 ज्यों ज्यों घर केे पर्दे बढ़ते रहते हैं<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<pre>
ग़ज़ल जो कभी पूरी नहीं हुई
ज्यों ज्यों घर केे पर्दे बढ़ते रहते हैं
नखरे तेज़ हवा के बढ़ते रहते हैं
आंखों में जब ख़्वाब पनपता है कोई
इनके काले घेरे बढ़ते रहते हैं
माज़ी में कुछ ढूंढ रहे होते हैं हम
बस कहने को आगे बढ़ते रहते हैं
जैसे जैसे जेब सम्हलती है यारो
चोरी चोरी खर्चे बढ़ते रहते हैं
हिज्र का अरसा साँसों में नापा करिये
दिन तो अक़्सर घटते बढ़ते रहते हैं
कुछ भूखों की आस लियेे फुटपाथों पर
मजबूरी के ठेले बढ़ते रहते हैं
कतरी जाती हैं जिनकी मरियल शाखें
गुलशन केे वो पौधे बढ़ते रहते हैं
</pre>
</div>
नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-72052880053846107382019-04-01T06:24:00.004-07:002019-04-01T06:24:59.377-07:00वक़्त मुझको हरा नहीं पाया<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<Pre>
फल दरख्तों के मोल ले आया
कैसे लाता मगर घनी छाया
एक सूरत ने यूँ गज़ब ढाया
उम्र भर होश फिर नहीं आया
अपनी तकदीर पर हँसी आयी
ज़िक्र जब भी कहीं तेरा आया
बुनता रहता है झुर्रियाँ हर पल
वक़्त होता नहीं कभी ज़ाया
हमने कल देर तक ठहाकों से
अपने ज़ख्मों को खूब सहलाया
आज भी साथ साथ चलता है
कितना मासूम है मेरा साया
कैसे पहचानता ज़माने को
मैं जो ख़ुद को समझ नहीं पाया
वक़्त ख़ुद के लिये मिला हो मुझे
वक़्त ऐसा कभी नहीं आया
एक उम्मीद सी बची है अभी
आज भी डाकिया नहीं आया
आख़िरश हार मान ली मैंने
वक़्त मुझको हरा नहीं पाया
</pre>
</div>
नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-9588504270950453112019-03-30T02:18:00.000-07:002019-03-30T02:18:06.737-07:00पहाड़ों से<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<Pre>
अब है जब सामना पहाड़ों से,
माँग कोई दुआ पहाडों से।
जब किया मश्विरा पहाड़ों से,
रास्ता मिल गया पहाड़ों से।
रास्ता तंग है ज़रा लेकिन,
रास्ता है सजा पहाड़ों से।
साथ ताउम्र थे समुंदर के,
इश्क़ ताउम्र था पहाड़ों से।
चाह कर भी कभी नहीं लौटा,
शहर जो भी गया पहाड़ों से।
मुश्किलें भी मिली पहाड़ों पर,
हौंसला भी मिला पहाड़ों से।
एक मीठी नदी निकलती है,
ख़ुश्क पत्थर नुमा पहाड़ों से।
बादलों ने कहा न जाने क्या,
चाँद छुपने लगा पहाड़ों से।
लौट आऊँगा मौत से पहले,
है ये वादा मेरा पहाड़ों से।
खेत बेरोज़गार हैं जब से
कारखाना सटा पहाड़ों से
</Pre>
</div>
नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-35491905587064386222019-03-10T01:43:00.001-08:002021-01-11T09:49:58.062-08:00दो ग़ज़ला<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<pre>------1
जब तक न लौट आयें परिंदे उड़ान से
लगते हैं घोंसले ये मेरे ही मकान से
अब चाशनी का बोझ उतारें ज़बान से
तलवार जब निकल ही चुकी है मियान से
आये थे गमगुसार लिये ज़ख्म की दवा
घबरा गये अगरचे पुराने निशान से
दफ़्तर से लौटते हैं मुलाज़िम बुझे बुझे
पत्थर लुढ़क रहे हों कि जैसे ढलान से
बाज़ार में तो खूब है कीमत अनाज की
मत पूछियेगा फिर भी कमाई किसान से
बरसों से वज़्न झूट का तारी है रूह पर
तकलीफ़ हो रही है तभी तो अज़ान से</pre><pre><br /></pre><pre>2212 1211 2212 12</pre><pre>ताउम्र भागते थे जो दौलत बटोरते</pre><pre>सोये हुए हैं देखिये सब इत्मीनान से</pre><pre>जंगल पहाड़ बर्फ़ समंदर नदी हवा
क्या खूब मौजज़े हैं घिरे आसमान से
घर से हटा तो लोगे सभी आईने मगर
कब तक बचे रहोगे नकुल इम्तिहान से
-----2
दो पल जो देख लूँ मैं उन्हे इत्मिनान से
मिल जाये कुछ निजात मुसलसल थकान से
उसने नज़र उठा के झुकायी ज़रूर थी
पर फिर पलट गयीं थी निगाहें बयान से
भँवरे उदास उदास हैं मायूस हैं ग़ुलाब
हो कर ख़फ़ा गये थे वो कल गुलसितान से
वादों की कोई फिक्र न मिलने का इंतज़ार
दिल जब लगा लिया हो किसी बेईमान से
मुझ से मेरे ग़मों पे सवालात छोड़िये
ऊंचाई पूछिये ना कभी आसमान से
गलती से उसने फोन मिलाया था कल् मुझे
पूछे न हाल कोई दिले बेज़ुबान से
सुर्खी ये शर्म से है कि गुस्से का है कमाल
मिलती है शक्ल देखिये ज़ीनत अमान से
लिखकर उन्हें जो पोस्ट किये ही नहीं कभी
रक्खे हुए हैं ख़त वो किताबों में शान से
</pre>
</div>
नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-34127121243721472842019-01-15T21:00:00.002-08:002019-01-15T21:00:27.076-08:00आज़ाद नज़्म<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<pre>
गली के दूसरे कोने में
जब इक बाँसुरी वाला
कभी बंसी बजाता है
तो ये मालूम होता है
कि दुन्या खूबसूरत है
कि जैसे ख़्वाब हो कोई
मगर जब बाँसुरी वाला
सुरों में चूक जाता है
बदल देता है धुन जब भी
किसी मशहूर गाने की
तो लगता है हक़ीक़त है
मैं अक्सर सोचता हूँ क्यों
ख़ुदा भी चूक जाता है
बहुत से सुर लगाने में
धुन अच्छी सी बनाने में
कईं मन्ज़र सजाने में
जब उस से भूल होती है
तो कितना दर्द होता है
अगर तुम जानना चाहो
तो बस अखबार पढ़ लेना
या उस बच्चे से मिल लेना
कि दिल में छेद हो जिसके
और उसकी माँ उसे खुल कर
कभी हँसने नहीं देती
</pre>
</div>
नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-28411680492712483622018-08-04T23:35:00.005-07:002019-07-29T23:04:41.456-07:00 कुछ दिन से खोया खोया हूँ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<pre>
कुछ दिन से खोया खोया हूँ
माज़ी में कुछ ढूंढ रहा हूँ
बच्चों से छिपता फिरता हूँ
पिछली छुट्टी का वादा हूँ
दुनिया को खुश रक्खूं कैसे
मैं खुद को भी कम पड़ता हूँ
थकने का भी वक़्त नहीं है
देखो मैं आधा बूढ़ा हूँ
मुझको रोक सको तो रोको
मैं इक बच्चे का सपना हूँ
हँसना तो पेशा है साहिब
तन्हाई में रो लेता हूँ
थोड़े सपने देख लिए थे
वैसे मैं सीधा सादा हूँ
चेहरे पर कुछ दर्द छपे हैं
वैसे मैं अच्छा दिखता हूँ
अखबारों में होता क्या है,
बस मतलब का पढ़ लेता हूँ
मुझको फिर से भूल गये हो
पिछले मौसम का छाता हूँ
मेरा पेशा पूछ रहे हो?
सोच रहा हूँ मैं क्या क्या हूँ
</Pre>
</div>
नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-85250842034143334712018-07-01T01:18:00.002-07:002018-07-01T01:18:26.793-07:00ये इश्क़ ऐसा दिमाग़ी बुखार होता है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
ये इश्क़ ऐसा दिमाग़ी बुखार होता है<br />
कि एक भूत सा सिर पर सवार होता है<br /><br />
हो गिफ़्ट शॉप कि दर्ज़ी हो या चने वाला<br />
इन आशिकों पे सभी का उधार होता है<br /><br />
तुम एक बार में निबटे हो यह ग़नीमत है<br />
किसी किसी को तो ये बार बार होता है<br /><br />
ये लाइलाज बीमारी है, ये जहन्नुम है<br />
अजी तबीब तक इसका शिकार होता है<br /><br />
विसाल तक में नहीं चैन इन मरीज़ों को,<br />
हों साथ फिर भी इन्हें इंतज़ार होता है<br /><br />
बड़े बड़ों को मुहब्बत ने ही सुधारा है,<br />
कि लुट-लुटा के सभी में सुधार होता है<br /><br />
लगे किसी के अलावा फ़िज़ूल जब सब कुछ<br />
"यही मरज़ तो मेरे दोस्त प्यार होता है"<br /><br />
</div>
नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-88196682825104533762018-06-18T02:54:00.001-07:002018-06-18T02:54:38.114-07:00पानी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<pre>
झील में बर्फ़ ने छुआ पानी
शर्म से काँपने लगा पानी
प्यास पहले भी कम न थी लेकिन,
अब के सर से गुज़र गया पानी
देख पाये नहीं नदी सूखी
हमनेे पत्थर पे लिख दिया पानी
एक शातिर दिमाग़ बादल ने
खेत के कान में कहा पानी
उसकी आंखों पे था यकीं हमको,
चाँद पर ढूंढ ही लिया पानी
रूह ने लिख दिये वसीअत में
आग, अम्बर, ज़मीं, हवा, पानी
घूम आयें कहीं पहाड़ों पर
आओ बदलें ज़रा हवा पानी
गाँव की जब हुई सड़क पक्की,
पहली बारिश में ही भरा पानी
</pre>
</div>
नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-50405408913939140892018-03-29T05:17:00.001-07:002018-03-29T05:17:25.537-07:00जब ज़ुरूरी हो बदलना चाहिए<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /><pre>
वक़्त के साँचे में ढलना चाहिए
जब ज़ुरूरी हो, बदलना चाहिए
मयकशी की क्या ज़रूरत दर्द में
आंसुओं से काम चलना चाहिए
काम तो मुझसे निकलवा ही लिया
अब तुम्हारा सुर बदलना चाहिए
तुम कहो तो हम फफक कर रो पड़ें,
बस तुम्हारा दिल बहलना चाहिए
गुल खिलाना भर नहीं गुलशन का फ़र्ज़
कोई भँवरा भी मचलना चाहिए
आज कल मुझको नहीं पहचानते
घास पर तुमको टहलना चाहिए
ख़ाब करने हैं अगर पूरे नकुल
ख़्वाहिशों का सिर कुचलना चाहिए
नकुल
</Pre>
</div>
नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-64993320857018904532018-03-03T01:40:00.001-08:002018-03-03T01:40:15.223-08:00इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आयेगी- होली की तरही<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<pre>
आदरणीय पंकज सुबीर जी के ब्लॉग पर आयोजित
2018 के तरही मुशायरे में मेरा प्रयास
ग़ज़ल
जुड़ी हर इक हमें उससे कहानी याद आएगी
जो बक्से में रखी कोई निशानी याद आयेगी
हमारा दम घुटेगा जब कभी शहरों की सड़कों पर
हवा हमको पहाड़ों की सुहानी याद आएगी
हम अब के गाँव लौटेंगे तो उन बचपन की गलियों में
किसी नुक्कड़ पे खोयी शादमानी याद आएगी
गली के मोड़ पर जिस घर की घण्टी हम बजाते थे
वहाँ रहती थी जो बूढ़ी सी नानी, याद आएगी
कुछ आलू काट कर खेतों में हमने गाड़ कर की थी
महीनों तक चली वो बाग़बानी याद आएगी
वो लड़की वक़्त से लड़कर अब औरत बन गयी होगी
लड़कपन की वो पहली छेड़खानी, याद आएगी
उसी छत से पतंगें इश्क़ की हमने उड़ाई थीं
अजी बस कीजिये, फिर वो कहानी याद आएगी
हमारे गाँव के रस्ते पर अब पुल बन गया लेकिन
नदी, जिस में कभी बहता था पानी, याद आएगी
बुढ़ापे के लिये अमरुद का इक पेड़ रक्खा है
"इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी"
गुज़रना उस गली से गर हुआ फाल्गुन महीने में
हमें पिचकारियों की मेज़बानी याद आएगी
</pre>
</div>
नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-83299786532615278422018-01-20T23:04:00.002-08:002018-06-24T01:49:04.225-07:00ज़ख्म दे जाये अब नये कोई<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<pre>
क्यों पुराने ही ग़म सहे कोई
ज़ख्म दे जाये अब नये कोई
रेगज़ारों से ही शिकायत क्यों
बादलों से भी कुछ कहे कोई
बात सब उलझनों की करते हैं
ढूंढता ही नहीं सिरे कोई
शायरी हिज्र ही में होती है
वस्ल पर क्या भला कहे कोई
आस लेकर गली में लौटा हूँ
काश खिड़की खुली मिले कोई
मौत मेरा नया बहाना है,
जाये उनको खबर करे कोई
डायरी पर दिखे तिरी सूरत
मेरे अशआर जब पढ़े कोई
दोस्तों में है नाम मेरा भी,
हाय! मुझ पर यकीं करे कोई
----
कुछ अन्य अशआर
गोल बर्फ़ी है या बताशा है
चाँद को भी ज़रा चखे कोई
आखिर उसको ख़ुदा मैं क्यों मानूँ,
जानता ही नहीं जिसे कोई
रूठ जाया करे यूँ ही मुझसे,
मुझ से झगड़ा किया करे कोई
अश्कबारी, घुटन, अकेलापन
इश्क़ पर क्या नया लिखे कोई
</pre>
</div>
नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-17090819230511663162017-10-19T05:32:00.000-07:002017-10-19T05:32:09.381-07:00कुमकुमे हँस दिये, रौशनी खिल उठी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<pre>
आदरणीय पंकज सुबीर sir के ब्लॉग पर दीपावली की तरही में मेरा प्रयास।
वक़्त बस का हुआ तो घड़ी खिल उठी
रास्ते खिल उठे, हर गली खिल उठी
गाँव पहुँचा तो बस से उतर कर लगा
जैसे ताज़ा हवा में नमी खिल उठी
वो हवेली जो मायूस थी साल भर
एक दिन के लिए ही सही, खिल उठी
घर पहुँचते ही छत ने पुकारा मुझे
कुछ पतंगे उड़ीं, चरखड़ी खिल उठी
छत पे नीली चुनर सूखती देखकर
उस पहाड़ी पे बहती नदी खिल उठी
बर्फ़ के पहले फाहे ने बोसा लिया
ठण्ड से काँपती तलहटी खिल उठी
चीड़ के जंगलों से गुज़रती हवा
गुनगुनाई और इक सिंफ़नी खिल उठी
उन पहाड़ी जड़ी बूटियों की महक
साँस में घुल गयी, ज़िन्दगी खिल उठी
मुझ से मिलकर बहुत खुश हुईं क्यारियाँ
ब्रायोफाइलम, चमेली, लिली खिल उठी
थोड़ा माज़ी की गुल्लक को टेढ़ा किया
एक लम्हा गिरा, डायरी खिल उठी
शाम से ही मोहल्ला चमकने लगा
"कुमकुमे हँस दिये, रौशनी खिल उठी"
गांव से लौटकर कैमरा था उदास
रील धुलवाई तो ग्रीनरी खिल उठी
फिर मुकम्मिल हुई इक पुरानी ग़ज़ल
काफ़िये खिल उठे, मौसिकी खिल उठी
</pre>
।</div>
नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-43614103651266764342017-10-07T02:41:00.000-07:002017-10-07T02:41:06.474-07:00नहीं कभी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<pre>
माना वो दौर लौट के आया नहीं कभी
हमने भी डायरी को जलाया नहीं कभी
यूँ तो किसी भी ग़म से मेरे ग़म भी कम न थे
बाज़ार में अगरचे सजाया नहीं कभी
रहती है अब उदास मेरे घर की क्रौकरी
फिर तुमकोे चाय पर जो बुलाया नहीं कभी
कुछ तो छुपा रहा है पसे अक़्स आइना
हमने तो कुछ भी इससे छुपाया नहीं कभी
ऐसा अगर है इश्क़ तो क्या ख़ाक इश्क़ है
कहते हैं बारिशों ने रुलाया नहीं कभी
कीचड़ में भी खिलें तो महकते हैं शान से,
फूलों ने पर ग़ुरूर दिखाया नहीं कभी
यूँ तो शरीफ़ लोग मिले शह्र में कईं
सच का किसी ने साथ निभाया नहीं कभी
मेरे लिए रुकी थी कईं बार ज़िन्दगी
मैंने ही अपना हाथ बढ़ाया नहीं कभी
कागज़ के उन हवाई जहाज़ों का क्या कुसूर
शिद्दत से हमने जिनको उड़ाया नहीं कभी
सहरा नहीं ये दिल है मिरा इंतज़ार में
पौधा यहाँ किसी ने लगाया नहीं कभी
शायद ज़ुबां हमारी कभी लड़खड़ाई हो
लेकिन ज़मीर हमने गिराया नहीं कभी
</pre>
</div>
नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2147711164652424895.post-88181546193175103382017-09-05T22:34:00.004-07:002017-09-17T02:23:25.220-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /><pre>
नज़्म
कुछ तो हो तुम, लेकिन क्या हो,
कह पाना आसान नहीं है
शायद इक सूखे पत्ते का माज़ी तो तुम
या इक फूल कि जिसको भँवरा चूम न पाया
कोई ख़्वाब,कि जिसे देखना नामुमकिन हो
के जो परिन्दा कभी डाल पर झूम न पाया?
लफ़्ज़ों में लिख पाने का इमकान नहीं है
कुछ तो हो तुम, लेकिन क्या हो
सच कहना आसान नहीं है
सुब्ह घास पर जमीं हुईं कुछ ओस की बूंदें
हवा का झोंका जो गर्मियों से बचा न पाया
किसी अँधेरी सड़क का अंतिम लैंप पोस्ट हो
या जो खिलौना कभी किसी को हँसा न पाया
गली जो ख़ाली तो है मगर सुनसान नहीं है
कुछ तो हो तुम, लेकिन क्या हो
सच कहना आसान नहीं है
किसी की बातों में जल्दबाज़ी में आ न जाना
ये वक़्त इक दिन हमारे रिश्ते को नाम देगा
हमें पता है कि हम कभी तो समझ सकेंगे
कोई शजर आखिर इस दुपहरी को शाम देगा
मगर पता है ये इतना भी आसान नहीं है
कुछ तो हो तुम, लेकिन क्या हो
सच कहना आसान नहीं है
</pre>
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नकुल गौतमhttp://www.blogger.com/profile/08033870691414582297noreply@blogger.com0