तीन साल पुरानी
एक गुमशुदा #ग़ज़ल
बिला दीदार यादों का बवंडर मार डालेगा
नज़र आया तो वो दिल में उतरकर मार डालेगा
तुम्हारा जनवरी का वाइदा तो ठीक है लेकिन
मुझे फ़ुर्क़त का ये ज़ालिम दिसम्बर मार डालेगा
तुम्हे पहला निवाला घूटते ही फिक्र है कल की
तुम्हारे आज को बेवज्ह यह डर मार डालेगा
हमें था शौक़ छाती तान कर हर जंग लड़ने का (तकाबूले रदीफ़)
किसे मालूम था वो तीर छिपकर मार डालेगा
ज़रा सा इल्म होने पर ख़ुदा खुद को समझता है
तुझे भी वक़्त आने पर मुकद्दर मार डालेगा
#नकुल
SheshDhar Tiwari जी के आदेश पर दो साल पहले
जैन साहब द्वारा याद दिलाने पर
आप सब की नज़्र