Saturday 17 June 2017

चीड़ के फूल हैं गिरे हर सू



चीड़ के फूल हैं गिरे हर सू
और ये माज़ी के सिलसिले हर सू

सुस्त से पड़ गए सभी बादल
पर्वतों पर घिरे घिरे हर सू

उंघते आसमां के कैनवस पर
रंग कितने ही थे भरे हर सू

खींच कर धुंध का ये परदा सा
पेड़ सोये खड़े-खड़े हर सू

बाग़ है या है यह चुनर तेरी
फूल ही फूल हैं खिले हर सू

जाग कर भी वो ख़्वाब जारी है
जानेमन तू ही तू दिखे हर सू

इश्क़ जब से हुआ उसे तब से
देता फिरता है मशवरे हर सू