Saturday 12 August 2017

दिल मगर अब भी है धौलाधार में


खो गया हूँ शहर की रफ़्तार में
दिल मगर अब भी है धौलाधार में

घर चलाता हूँ मैं ख़ुद को बेचकर
फन मेरा टिकता नहीं बाज़ार में

अब वो नुक्कड़ भी नहीं पहचानता
बैठते थे हम जहाँ बेकार में

उस गली में फिर कहाँ जाना हुआ
दिल जहाँ टूटा था पहले प्यार में

यूं हकीकत खाब पर भारी पड़ी
हम उलझ कर रह गए घर बार में।

घूम आते थे हम अक़्सर मॉल पर,
अब कहाँ वो बात है इतवार में

मुस्कुराने में अभी कुछ देर है
मैं अभी उतरा नहीं किरदार में

लौट कर आया तो घर भी रो पड़ा
है बहुत सीलन हर इक दीवार में

यूँ न हाँ में हाँ मिलाया कर मेरी,
लुत्फ़ आता है तेरे इन्कार में