Saturday, 7 June 2025

इश्क़ में पड़ गए हबाबों के

 हम जो आदी हुए अज़ाबों के

इश्क़ में पड़ गए हबाबों के


फूल भी फोन के कवर में हैं

अब ज़माने नहीं किताबों के


हमने पूछे नहीं सवाल अब तक

हैं मगर आस में जवाबों के


तेरी जुल्फों को छू न पाए जो,

पूछिए दर्द उन गुलाबों के


मेरा किरदार खो गया शायद

दरमियां खुश फ़हम निसाबों के


हाथ छलनी हैं साँस भारी है

हम तलबगार हैं गुलाबों के


क्या ही दरियाओं का करेंगे हम

हम जो शौक़ीन हैं सराबों के


 तुम न लौटोगे जानते हैं हम

मुन्तज़िर हैं तुम्हारे ख्वाबों के


नकुल

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