कशमकश दिल में ये कैसी चल रही है
इल्म है, मुमकिन नहीं जो चाहता हूँ
एक ख़ुशफ़हमी सी दिल में पल रही
और' ये ख़ुशफ़हमी है मैं भी जानता हूँ
इस ज़माने के तकाज़े हैं पुराने
और दिल की चाहतें कुदरत खुदा की
ढूंढता है दिल खुशी के कुछ बहाने
फिर ठिठक जाता है सोचे जब सज़ा की
रूह से मेरी उतारे क़र्ज़ कोई
ज़हर दे मुझको कि सूली पर चढ़ाए
इश्क़ है इक जुर्म या है मर्ज़ कोई
कोई तो आकर मुझे अब ये बताए
ख्वाहिशों पर वार करना चाहिए था
या मुझे इज़हार करना चाहिए था
नकुल
2122 2122 2122
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