Monday 18 June 2018

पानी


झील में बर्फ़ ने छुआ पानी
शर्म से काँपने लगा पानी

प्यास पहले भी कम न थी लेकिन,
अब के सर से गुज़र गया पानी

देख पाये नहीं नदी सूखी
हमनेे पत्थर पे लिख दिया पानी

एक शातिर दिमाग़ बादल ने
खेत के कान में कहा पानी

उसकी आंखों पे था यकीं हमको,
चाँद पर ढूंढ ही लिया पानी

रूह ने लिख दिये वसीअत में
आग, अम्बर, ज़मीं, हवा, पानी

घूम आयें कहीं पहाड़ों पर
आओ बदलें ज़रा हवा पानी

गाँव की जब हुई सड़क पक्की,
पहली बारिश में ही भरा पानी