Monday 6 March 2017

यूँ सजाया है समुन्दर का किनारा किसने


ग़ज़ल


यूँ सजाया है समुन्दर का किनारा किसने
साथ मेरे है लिखा नाम तुम्हारा किसने

देखने में थे चरागों के सभी रखवाले
फिर किया तेज़ हवाओं को इशारा किसने


आज रब ने हैं सुनी माँ की दुआएं शायद
चार टुकड़ों में बंटे घर को सँवारा किसने

मेरी तन्हाई कहीं रूठ न जाए मुझसे
दश्त में नाम मिरा ले के पुकारा किसने

इन सराबों को भला किसने बनाया होगा
"फिर मुझे रेत के दलदल में उतारा किसने"

मुझसे मिलने को जुटे हैं ये गली के पत्थर
मेरी आमद का दिया इनको इशारा किसने

कौन है जिसको मेरा दर्द नज़र आया है
यूँ बिलखती हुई नज़रों से निहारा किसने

कौन है अब भी मुझे दोस्त समझने वाला
दर्द को मेरे भला फिर से उभारा किसने

झूट का साथ तुझे देना पड़ा आखिरकार
भूत सच का ये तेरे सर से उतारा किसने

आज क़ातिल ने मेरे ख़ूब सताया मुझको
पूछता था की नकुल आपको मारा किसने

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