ग़ज़ल
यूँ सजाया है समुन्दर का किनारा किसने
साथ मेरे है लिखा नाम तुम्हारा किसने
देखने में थे चरागों के सभी रखवाले फिर किया तेज़ हवाओं को इशारा किसनेआज रब ने हैं सुनी माँ की दुआएं शायद
चार टुकड़ों में बंटे घर को सँवारा किसने
मेरी तन्हाई कहीं रूठ न जाए मुझसे
दश्त में नाम मिरा ले के पुकारा किसने
इन सराबों को भला किसने बनाया होगा
"फिर मुझे रेत के दलदल में उतारा किसने"
मुझसे मिलने को जुटे हैं ये गली के पत्थर
मेरी आमद का दिया इनको इशारा किसने
कौन है जिसको मेरा दर्द नज़र आया है
यूँ बिलखती हुई नज़रों से निहारा किसने
कौन है अब भी मुझे दोस्त समझने वाला
दर्द को मेरे भला फिर से उभारा किसने
झूट का साथ तुझे देना पड़ा आखिरकार
भूत सच का ये तेरे सर से उतारा किसने
आज क़ातिल ने मेरे ख़ूब सताया मुझको
पूछता था की नकुल आपको मारा किसने
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