Saturday 18 February 2017

बेवकूफी बहुत बड़ी कर ली


हमने जब से ये आशिक़ी कर ली
कुछ अजब सी ये ज़िन्दगी कर ली

रास आने लगा ये सन्नाटा
ज्यूँ ही लफ़्ज़ों से दोस्ती कर ली

अश्क़ मेरे कहीं न सुन लें वो
मैंने आवाज़ कुछ कड़ी कर ली

देर उनको हुई थी, क्या कहता
मैने पीछे मेरी घड़ी कर ली

हम ज़रा नर्म क्या पड़े, उसने
अपनी आँखें बड़ी बड़ी कर ली

बाद मुद्दत फिर उनसे मिलना था
हमने माज़ी पे इस्तरी कर ली

नाम कोने पे लिख लिया उनका
पाक़ हमने ये डायरी कर ली

अस्ल ख़बरें तो दब गयीं हैं कहीं
इश्तिहारों ने फिर ठगी कर ली

"आँख में कुछ गिरा है" कह माँ ने
जज़्ब आँखों में इक नदी कर ली

आप छत पर चढ़े तो बादल से
चाँद ने कल कहासुनी कर ली

साथ सच के 'नकुल' खड़े होकर
बेवकूफी बहुत बड़ी कर ली


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