Tuesday 28 March 2017

दिल को साहिब ख़ुद समझाना पड़ता है


एक ग़ज़ल कुछ अलग अंदाज़ में कोशिश की है
देखिये कैसी रही


ग़ज़ल

दिल को साहिब खुद समझाना पड़ता है
भैंस के आगे बीन बजाना पड़ता है

दुनियादारी की अपनी है मजबूरी
हर नाके पर टोल चुकाना पड़ता है

जीवन के इन उबड़ खाबड़ रस्तों पर
हल्का हल्का ब्रेक लगाना पड़ता है

झूट का क्या है खुद ही पकड़ा जायेगा
सच को लेकिन प्रूफ़ दिखाना पड़ता है

ज़िम्मेदारी है सब की अपनी अपनी
अपना अपना रोल निभाना पड़ता है

दिल का मैल दिखेगा आखिर कितनों को
घर के शीशों को चमकाना पड़ता है

अपनी अपनी ढफली है सब रिश्तों की
सबको अपना राग सुनाना पड़ता है

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