Friday 27 February 2015

जीत का मैंने हुनर जाना है


लफ्ज़ portal की 22 वीं तरही में मेरी एक कोशिश...


जीत का मैंने हुनर जाना है
हार उम्मीद का मर जाना है

आज़मा ले ये ज़माना मुझको
“आज हर हद से गुज़र जाना है”

रूह-दानी का मुक़द्दर तय है
टूट जाना है बिखर जाना है

आख़िरी ठौर चिता ही होगी
जाइये आप जिधर जाना है

दर्द सहने की हुई है आदत
चुटकुला सुन के बिफर जाना है

वक़्त के साथ बदल कर देखो
वक़्त को ख़ुद ही सुधर जाना है

मैं तबीबों का सताया हुआ हूँ
अब दवा दोगे तो मर जाना है

इक घडीसाज़ कहा करता था
वक़्त इक दिन ये ठहर जाना है

ख़ामख़ा ज़िद पे अड़े रहते हो
लौट आऊंगा मगर जाना है

मेरी तन्हाई बिलखती होगी
ये बहाना है कि घर जाना है

इसमें काँटों को सजा कर देखो
बाग़ दिल का ये संवर जाना है

No comments:

Post a Comment