आदरणीय पंकज सुबीर जी के ब्लॉग पर होली की तरही में मेरी कोशिश
नानी की रसोई की फिर याद करा दूँ तो
मैं दाल मखानी में घी थोड़ा मिला दूँ तो
फ़ाल्गुन का महीना है, होली का बहाना है
तू भूल ग़िले सारे, शिकवे मैं भुला दूँ तो
यह भांग भी होली पर झूमेंगी नशे में धुत,
ले नाम तिरा इसमें , जल थोड़ा मिला दूँ तो
कैसे हैं ये रासायन, चमड़ी ही जला डालें,
चल छोड़ गुलालों को, जल पान करा दूँ तो?
बगिया की महक तुझको फीकी न लगे कहना ,
गर बादे-सबा तुझको , घर उनका दिखा दूँ तो
चांदी की मिरी ज़ुल्फ़ें चमकेंगी घटा बन कर,
गर ग्रीस ज़रा सी मैं बालों पे लगा दू तो
ग़ज़लें ये मिरी शायद , फूलों सी महक जाएँ ,
इनको मैं अगर तेरी यादों से सजा दूँ तो
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