Thursday 5 February 2015

सीढ़ियां चढ़ते हुए है कौन जो थकता न हो


क्या मिला है ज़िंदगी में जब तलक जज़्बा न हो?
सीढ़ियां चढ़ते हुए है कौन जो थकता न हो?

पेड़ से पक कर गिरे फल का मज़ा अपना ही है,
बस मसालों में पका फल क्यों भला खट्टा न हो

काटने और तोड़ने में फ़र्क़ तो रखिये जनाब,
ध्यान रखिये खिड़कियों से कांच ये छोटा न हो

लोन पर घर जो लिया किश्तों में दब के रह गए,
डर सताए अब के दस्तावेज़ में घपला न हो

नागफनियों से शहर के घर तो हैं सजवा लिये
रात -रानी गाँव में सूखी मिले, ऐसा न हो

खेलता है जिन खिलौनों से मेरा बेटा, 'नकुल' !
जो बनाता है इन्हें वो भी कहीं बच्चा न हो ।

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