Tuesday 30 April 2019

शिकवा किया न मैंने कभी कुछ गिला किया



तक़दीर ने मज़ाक बड़े से बड़ा किया
शिकवा किया न मैंने कभी कुछ गिला किया

जिस ने मेरी वफ़ा पर उठाये कई सवाल
मैंने उसी से इश्क़ कई मर्तबा किया

बच्चे तो लड़ झगड़ के दोबारा गले लगे
बेकार ही बड़ों ने तमाशा खड़ा किया

मौसम चुनाव का है ग़ज़ल इश्क़ पर हुई
हमको सुकून है कि चलो कुछ नया किया

बेवक्त चार लोग अयादत को आ गये
बेवज्ह चाय का भी मज़ा किरकिरा किया

आखिर उसी की रायशुमारी बचा सकी
 हमने तमाम उम्र जिसे अनसुना किया

कुछ देर को मुझे तो हुआ ही नहीं यक़ीन
उसने गले लगा के यूँ हैरतज़दा किया

मैं अपनी ख्वाहिशों से परेशान था मगर
फिर भी मेरे हिसाब से जितना हुआ, किया

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