कुछ दिन से खोया खोया हूँ माज़ी में कुछ ढूंढ रहा हूँ बच्चों से छिपता फिरता हूँ पिछली छुट्टी का वादा हूँ दुनिया को खुश रक्खूं कैसे मैं खुद को भी कम पड़ता हूँ थकने का भी वक़्त नहीं है देखो मैं आधा बूढ़ा हूँ मुझको रोक सको तो रोको मैं इक बच्चे का सपना हूँ हँसना तो पेशा है साहिब तन्हाई में रो लेता हूँ थोड़े सपने देख लिए थे वैसे मैं सीधा सादा हूँ चेहरे पर कुछ दर्द छपे हैं वैसे मैं अच्छा दिखता हूँ अखबारों में होता क्या है, बस मतलब का पढ़ लेता हूँ मुझको फिर से भूल गये हो पिछले मौसम का छाता हूँ मेरा पेशा पूछ रहे हो? सोच रहा हूँ मैं क्या क्या हूँ
Saturday, 4 August 2018
कुछ दिन से खोया खोया हूँ
Sunday, 1 July 2018
ये इश्क़ ऐसा दिमाग़ी बुखार होता है
ये इश्क़ ऐसा दिमाग़ी बुखार होता है
कि एक भूत सा सिर पर सवार होता है
हो गिफ़्ट शॉप कि दर्ज़ी हो या चने वाला
इन आशिकों पे सभी का उधार होता है
तुम एक बार में निबटे हो यह ग़नीमत है
किसी किसी को तो ये बार बार होता है
ये लाइलाज बीमारी है, ये जहन्नुम है
अजी तबीब तक इसका शिकार होता है
विसाल तक में नहीं चैन इन मरीज़ों को,
हों साथ फिर भी इन्हें इंतज़ार होता है
बड़े बड़ों को मुहब्बत ने ही सुधारा है,
कि लुट-लुटा के सभी में सुधार होता है
लगे किसी के अलावा फ़िज़ूल जब सब कुछ
"यही मरज़ तो मेरे दोस्त प्यार होता है"
Monday, 18 June 2018
पानी
झील में बर्फ़ ने छुआ पानी शर्म से काँपने लगा पानी प्यास पहले भी कम न थी लेकिन, अब के सर से गुज़र गया पानी देख पाये नहीं नदी सूखी हमनेे पत्थर पे लिख दिया पानी एक शातिर दिमाग़ बादल ने खेत के कान में कहा पानी उसकी आंखों पे था यकीं हमको, चाँद पर ढूंढ ही लिया पानी रूह ने लिख दिये वसीअत में आग, अम्बर, ज़मीं, हवा, पानी घूम आयें कहीं पहाड़ों पर आओ बदलें ज़रा हवा पानी गाँव की जब हुई सड़क पक्की, पहली बारिश में ही भरा पानी
Thursday, 29 March 2018
जब ज़ुरूरी हो बदलना चाहिए
वक़्त के साँचे में ढलना चाहिए जब ज़ुरूरी हो, बदलना चाहिए मयकशी की क्या ज़रूरत दर्द में आंसुओं से काम चलना चाहिए काम तो मुझसे निकलवा ही लिया अब तुम्हारा सुर बदलना चाहिए तुम कहो तो हम फफक कर रो पड़ें, बस तुम्हारा दिल बहलना चाहिए गुल खिलाना भर नहीं गुलशन का फ़र्ज़ कोई भँवरा भी मचलना चाहिए आज कल मुझको नहीं पहचानते घास पर तुमको टहलना चाहिए ख़ाब करने हैं अगर पूरे नकुल ख़्वाहिशों का सिर कुचलना चाहिए नकुल
Saturday, 3 March 2018
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आयेगी- होली की तरही
आदरणीय पंकज सुबीर जी के ब्लॉग पर आयोजित 2018 के तरही मुशायरे में मेरा प्रयास ग़ज़ल जुड़ी हर इक हमें उससे कहानी याद आएगी जो बक्से में रखी कोई निशानी याद आयेगी हमारा दम घुटेगा जब कभी शहरों की सड़कों पर हवा हमको पहाड़ों की सुहानी याद आएगी हम अब के गाँव लौटेंगे तो उन बचपन की गलियों में किसी नुक्कड़ पे खोयी शादमानी याद आएगी गली के मोड़ पर जिस घर की घण्टी हम बजाते थे वहाँ रहती थी जो बूढ़ी सी नानी, याद आएगी कुछ आलू काट कर खेतों में हमने गाड़ कर की थी महीनों तक चली वो बाग़बानी याद आएगी वो लड़की वक़्त से लड़कर अब औरत बन गयी होगी लड़कपन की वो पहली छेड़खानी, याद आएगी उसी छत से पतंगें इश्क़ की हमने उड़ाई थीं अजी बस कीजिये, फिर वो कहानी याद आएगी हमारे गाँव के रस्ते पर अब पुल बन गया लेकिन नदी, जिस में कभी बहता था पानी, याद आएगी बुढ़ापे के लिये अमरुद का इक पेड़ रक्खा है "इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी" गुज़रना उस गली से गर हुआ फाल्गुन महीने में हमें पिचकारियों की मेज़बानी याद आएगी
Saturday, 20 January 2018
ज़ख्म दे जाये अब नये कोई
क्यों पुराने ही ग़म सहे कोई ज़ख्म दे जाये अब नये कोई रेगज़ारों से ही शिकायत क्यों बादलों से भी कुछ कहे कोई बात सब उलझनों की करते हैं ढूंढता ही नहीं सिरे कोई शायरी हिज्र ही में होती है वस्ल पर क्या भला कहे कोई आस लेकर गली में लौटा हूँ काश खिड़की खुली मिले कोई मौत मेरा नया बहाना है, जाये उनको खबर करे कोई डायरी पर दिखे तिरी सूरत मेरे अशआर जब पढ़े कोई दोस्तों में है नाम मेरा भी, हाय! मुझ पर यकीं करे कोई ---- कुछ अन्य अशआर गोल बर्फ़ी है या बताशा है चाँद को भी ज़रा चखे कोई आखिर उसको ख़ुदा मैं क्यों मानूँ, जानता ही नहीं जिसे कोई रूठ जाया करे यूँ ही मुझसे, मुझ से झगड़ा किया करे कोई अश्कबारी, घुटन, अकेलापन इश्क़ पर क्या नया लिखे कोई
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