क्यों पुराने ही ग़म सहे कोई ज़ख्म दे जाये अब नये कोई रेगज़ारों से ही शिकायत क्यों बादलों से भी कुछ कहे कोई बात सब उलझनों की करते हैं ढूंढता ही नहीं सिरे कोई शायरी हिज्र ही में होती है वस्ल पर क्या भला कहे कोई आस लेकर गली में लौटा हूँ काश खिड़की खुली मिले कोई मौत मेरा नया बहाना है, जाये उनको खबर करे कोई डायरी पर दिखे तिरी सूरत मेरे अशआर जब पढ़े कोई दोस्तों में है नाम मेरा भी, हाय! मुझ पर यकीं करे कोई ---- कुछ अन्य अशआर गोल बर्फ़ी है या बताशा है चाँद को भी ज़रा चखे कोई आखिर उसको ख़ुदा मैं क्यों मानूँ, जानता ही नहीं जिसे कोई रूठ जाया करे यूँ ही मुझसे, मुझ से झगड़ा किया करे कोई अश्कबारी, घुटन, अकेलापन इश्क़ पर क्या नया लिखे कोई
Saturday, 20 January 2018
ज़ख्म दे जाये अब नये कोई
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