Thursday 29 March 2018

जब ज़ुरूरी हो बदलना चाहिए


वक़्त के साँचे में ढलना चाहिए
जब ज़ुरूरी हो, बदलना चाहिए

मयकशी की क्या ज़रूरत दर्द में
आंसुओं से काम चलना चाहिए

काम तो मुझसे निकलवा ही लिया 
अब तुम्हारा सुर बदलना चाहिए

तुम कहो तो हम फफक कर रो पड़ें,
बस तुम्हारा दिल बहलना चाहिए

गुल खिलाना भर नहीं गुलशन का फ़र्ज़
कोई भँवरा भी मचलना चाहिए

आज कल मुझको नहीं पहचानते
घास पर तुमको टहलना चाहिए

ख़ाब  करने हैं अगर पूरे नकुल
ख़्वाहिशों का सिर कुचलना चाहिए

नकुल

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