Friday 18 November 2016

नज़्म: फूल नीले


आज़ाद नज़्म


फूल नीले इस गली में
आज भी खिलते हैं लेकिन
अब नहीं वो बात इनमें
अब महक वैसी नहीं है
मैं न कहता था कि इनकी
ये महक असली नहीं है।

ले गयीं हो तुम महक भी
साथ अपने
इस गली से उस गली में

सच कहूँ!
बादे सबा भी
अब नहीं लगती है ताज़ा।
हैं बहुत मायूस झौंके।
और यह खिड़की भी देखो
अब नहीं खुलती ख़ुशी से

ले गयीं मुस्कान इनकी
साथ अपने
इस गली से उस गली में

लॉन अब भी ख़ुश्क सा है
ओस भी पड़ती नहीं अब
चाँदनी जाने से पहले
घास भी रोती है शायद
सुब्ह नंगे पाँव इस पर
तुम नहीं चलती हो जब से

ले गयी हो शबनमी एहसास भी तुम
साथ अपने
इस गली से उस गली में

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