आदरणीय पंकज सुबीर sir के ब्लॉग पर दीवाली के तरही मुशायरे में मेरी हज़ल
लुटेरे मॉल सज-धज कर खड़े हैं
सनम दीपावली के दिन चले हैं
लगी दीपावली की सेल जब से
मेरी बेग़म के अच्छे दिन हुए हैं
मेरे बटुए का बी.पी. बढ़ रहा है
मेरे बच्चे खिलौने चुन रहे हैं
सफाई में लगी हैं जब से बेग़म
सभी फनकार तरही में लगे हैं
तरन्नुम में सुना दी सब ने गज़लें,
मगर हम क्या करें जो बेसुरे हैं
कहाँ थूकें भला अब पान खा कर
सभी फुटपाथ फूलों से सजे हैं
यक़ीनन आज फिर होगी धुलाई
गटर में आज फिर पी कर गिरे हैं
नहीं दफ़्तर में रुकता देर तक अब
मेरे बेगम ने जब से नट कसे हैं
इन्हें खोजेंगे कमरे में नवासे
छिपा कर आम नानी ने रखे हैं
चलो छोड़ो जवानी के ये किस्से
'नकुल' अब हम भी बूढ़े हो चले हैं
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