Friday, 22 November 2024

हवा सलीके से चल रही है - ग़ज़ल

 



हवा सलीके से चल रही है, हर एक पत्ता संभल रहा है

तुम्हारी खिड़की खुली हुई है मिज़ाज मौसम बदल रहा है


हसीन वादी, सबा सुहानी, महक रही है ये रात-रानी, 

ये शाम यूं ही नहीं थमी है,  तुम्हारा ही कुछ दखल रहा है


पियालियाँ लड़खड़ा रही हैं सुराहियों की हैं आँखें बोझिल

बहक रहा है खुशी में साक़ी  ये मैकदा भी मचल रहा है


हर एक गुल मुस्कुरा रहा है सजी हुई है हर एक क्यारी

शजर अदब से झुके हैं चंदा बरामदे में टहल रहा है


तुम्हारे आने पे सकपका कर वो बड़बड़ाने लगा है कुछ कुछ

तुम्हारे आशिक़ को अंजुमन में तुम्हारा होना ही खल रहा है


तुम्हारे कानों की बालियों से फिसल के किरणें बिखर रही हैं

इसी नज़ारे में खोये सूरज का डूब जाना भी टल रहा है


हर एक चर्चा तुम्हारा चर्चा तुम्ही ग़ज़ल हो तुम्ही तसव्वुर 

हमारा होना भी धीरे धीरे तुम्हारे होने में ढल रहा है


हमारी ग़ज़लों की डायरी में तुम्हारा ही ज़िक्र है मुसलसल 

इसी से दिल भी बहल रहा है इसी से खर्चा भी चल रहा है




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