जमी घास पर दोपहर तक है शबनम
कोई कर गया आँच सूरज की मद्धम
हरी पत्तियाँ क्यों मनाएँगी मातम
ये गिरने से पहले सुनायेंगी सरगम
है जादू पहाड़ों की ताज़ा हवा का
कि मीलों चलें फिर भी घुटता नहीं दम
कभी धूप आये कभी छाये कोहरा
ये मौसम कहीं ख़ुश्क है तो कहीं नम
जो बादल अभी सुस्त से दिख रहे हैं
ये सब जनवरी में दिखाएंगे दम खम
बहाना मिले आप मिलने जो आएं
मेरी आजकल चाय होती है कुछ कम
निकलते नहीं दिन ढले आप बाहर
सो छत पर नहीं दिख रहे शाम को हम
हिमाचल में हूँ इस बरस इत्तफाकन
यहाँ सर्दियों का गुलाबी है मौसम
अभी वक़्त है बर्फ़ गिरने में थोड़ा
यहाँ जल्द होगा सफेदी का परचम
नकुल गौतम
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