गली के दूसरे कोने में जब इक बाँसुरी वाला कभी बंसी बजाता है तो ये मालूम होता है कि दुन्या खूबसूरत है कि जैसे ख़्वाब हो कोई मगर जब बाँसुरी वाला सुरों में चूक जाता है बदल देता है धुन जब भी किसी मशहूर गाने की तो लगता है हक़ीक़त है मैं अक्सर सोचता हूँ क्यों ख़ुदा भी चूक जाता है बहुत से सुर लगाने में धुन अच्छी सी बनाने में कईं मन्ज़र सजाने में जब उस से भूल होती है तो कितना दर्द होता है अगर तुम जानना चाहो तो बस अखबार पढ़ लेना या उस बच्चे से मिल लेना कि दिल में छेद हो जिसके और उसकी माँ उसे खुल कर कभी हँसने नहीं देती
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