Tuesday 15 January 2019

आज़ाद नज़्म


गली के दूसरे कोने में 
जब इक बाँसुरी वाला
कभी बंसी बजाता है
तो ये मालूम होता है
कि दुन्या खूबसूरत है 
कि जैसे ख़्वाब हो कोई


मगर जब बाँसुरी वाला
सुरों में चूक जाता है
बदल देता है धुन जब भी
किसी मशहूर गाने की
तो लगता है हक़ीक़त है

मैं अक्सर सोचता हूँ क्यों
ख़ुदा भी चूक जाता है
बहुत से सुर लगाने में
धुन अच्छी सी बनाने में
कईं मन्ज़र सजाने में

जब उस से भूल होती है
तो कितना दर्द होता है
अगर तुम जानना चाहो
तो बस अखबार पढ़ लेना

या उस बच्चे से मिल लेना
कि दिल में छेद हो जिसके
और उसकी माँ उसे खुल कर
कभी हँसने नहीं देती


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