Monday 15 August 2016

हिचकियों ने कल सताया देर तक


ज़ुल्म मुझ पर उसने ढाया देर तक
हिचकियों ने कल सताया देर तक

बाग़ में ताज़ा कली को देख कर
एक भँवरा गुनगुनाया देर तक

कल अमावस हो गयी पूनम हुज़ूर
चाँद छत पर मुस्कुराया देर तक

मोर ने अंगड़ाइयाँ जब खुल के लीं
मेघ ने मल्हार गाया देर तक

कल तेरी तसवीर से बातें हुईं
हालेदिल मैंने सुनाया देर तक

ख़्वाब में भी कल वो आये देर से
सब्र मेरा आज़माया देर तक

याद रखने की हिदायत दे गया
लौट कर जो ख़ुद न आया देर तक

2 comments:

  1. कल तेरी तस्वीर से बातें हुईं ...
    बहुत ही लाजवाब शेर है इस बेमिसाल ग़ज़ल का ... बहुत खूब ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार दिगंबर जी

      इस ब्लॉग पर यह पहली टिप्पणी है :-)
      सो जवाब में देरी हो गयी। आदत नहीं है न

      Delete