ज़ुल्म मुझ पर उसने ढाया देर तक
हिचकियों ने कल सताया देर तक
बाग़ में ताज़ा कली को देख कर
एक भँवरा गुनगुनाया देर तक
कल अमावस हो गयी पूनम हुज़ूर
चाँद छत पर मुस्कुराया देर तक
मोर ने अंगड़ाइयाँ जब खुल के लीं
मेघ ने मल्हार गाया देर तक
कल तेरी तसवीर से बातें हुईं
हालेदिल मैंने सुनाया देर तक
ख़्वाब में भी कल वो आये देर से
सब्र मेरा आज़माया देर तक
याद रखने की हिदायत दे गया
लौट कर जो ख़ुद न आया देर तक
कल तेरी तस्वीर से बातें हुईं ...
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब शेर है इस बेमिसाल ग़ज़ल का ... बहुत खूब ...
हार्दिक आभार दिगंबर जी
Deleteइस ब्लॉग पर यह पहली टिप्पणी है :-)
सो जवाब में देरी हो गयी। आदत नहीं है न